सोने के भाव इन दिनों सातवें आसमान पर हैं। 58 हज़ार रुपए तोला से नीचे खिसक ही नहीं रहा है। लेकिन हमें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। जैसे सोते वक़्त आदमी भाव शून्य हो जाता है, वैसे ही सोने के भाव भी आम आदमी के लिए ज़्यादा मायने नहीं रखते।
ख़रीदना हो तो कितना ही महँगा हो ख़रीद ही लेता है। ...और न ख़रीदना हो तो कितना भी सस्ता हो, महँगा ही लगता है। भाव यहाँ भी शून्य। फिर भी सामाजिक प्रतिष्ठा या विवाद की बड़ी जड़ सोना ही होता है।
'फ़्रीडम एट मिडनाइट' से आज तक सोना बड़ा सोणा है। लेरी कॉलिन्स और लेपियरे की यह किताब कई वजहों से विवाद में आई। उनमें एक सोना भी था। सोने का सिंहासन। इसमें कहा गया कि उड़ीसा के महाराजा की शैय्या सोने की है और उसकी बनावट ब्रिटिश महारानी के सिंहासन से मिलती-जुलती है। हो गया विवाद।
बहरहाल, जैसे कभी शेयर गिरते-चढ़ते थे, अब सोना चढ रहा है। बाज़ार काँप रहे हैं और घरों में विवाद। बढते भाव देखकर कोई कहता है- घर में रखा सारा सोना आज ही बेच दो। सस्ता होगा तब वापस ख़रीद लेंगे। कोई कहता है- और बढ़ेगा।
बे-भाव का सोना। घर-घर में भाव। सोने के बिना काम नहीं चलता। ज़िंदगी भी नहीं। दिनभर की सक्रियता की जड़ और कई तरह की हाई प्रोफ़ाइल बीमारियों का इलाज सोने में है। बीमारियाँ दूर रखने के लिए भर- नींद सोना ज़रूरी है। किसी ज़माने में गले के दर्द और हाथ की मोंच के लिए सोने का हार या कंगन ज़रूरी होते थे।
यही वजह है कि सोना चढ़ते-चढ़ते भी कई भाव जगा रहा है। कोई सोना चाहता है। कोई उसकी लंका बना लेता है। लेकिन लंका तो हनुमान जला आए थे। फिर राजतिलक में विभीषण को राम ने कौन सी लंका सौंपी? जली हुई या मरम्मत कराई हुई? जवाब उतना ही आसान- कि ताप पाकर सोना जलता नहीं, उसमें और निखार आता है।
जिनकी कुव्वत सोने से मेल नहीं खाती, वे बेचारे, गुलज़ार की तरह कंचे रखकर भी अपनी जेब में आसमान समेट लेते हैं। इस तरह-
सैकड़ों बार गिने थे मैंने,
जेब में नौ ही कंचे थे,
एक जेब से दूसरी जेब में रखते- रखते
इक कंचा खो बैठा हूँ,
न हारा, न गिरा कहीं पर
प्लूटो मेरे आसमान से ग़ायब है।।
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