ये पहला बजट है जिसमें मोदी सरकार ने निम्न मध्यम वर्ग का भला करने की सोची है। हालाँकि इन्कम टैक्स में छूट की जो घोषणाएँ की गईं हैं, उनका भी ज़्यादा कोई फ़ायदा मिलने वाला नहीं है। कैसे? नई घोषणाओं में वित्तमंत्री ने कहा कि अब नई आयकर प्रणाली में सात लाख की सालाना इन्कम वाले लोग करमुक्त हो जाएँगे।
अब इसकी पुरानी प्रणाली से तुलना करते हैं तो कुछ भी फ़र्क़ नज़र नहीं आता। पुरानी प्रणाली में भी 80 सी की मामूली बचत के साथ सात लाख की सालाना आय वाला वेतनभोगी कर मुक्त ही रहता है। इस 80 सी की बचत के लिए वेतनभोगी को ज़्यादा मशक़्क़त भी नहीं करनी पड़ती। पीएफ सेलेरी से ही कट जाता है और एक एलआईसी ले ली जाए तो डेढ़ लाख रुपए सालाना का 80 सी का कोटा पूरा हो जाता है।
कुल मिलाकर नई प्रणाली में तमाम सुधारों की घोषणा भी इसलिए की गईं हैं ताकि उसे पुरानी प्रणाली की बराबरी पर लाया जा सके। दरअसल, नई टैक्स प्रणाली को पिछले साल केवल पाँच लाख लोगों ने ही अपनाया था। पूरी तरह यह फ़्लॉप हो चुकी थी। इसमें नई जान फूंकने के लिए ही इस बार के बजट में तमाम घोषणाएँ की हैं।
अब चूँकि दोनों प्रणालियों में कोई ख़ास अंतर नहीं रहा इसलिए नई प्रणाली की तरफ़ लोगों का झुकाव बढ़ेगा जिसमें किसी भी तरह की बचत को प्राथमिकता नहीं दी गई है। सरकार बिना छूट और बिना बचत के नए अध्याय को बढ़ावा देना चाहती है। कांग्रेस के ज़माने में जो टैक्स में तरह- तरह के एक्जम्शन दिए गए थे, उन्हें ख़त्म किया जा रहा है।
संदेश यह है कि कल किसने देखा है? कल की चिंता मत कीजिए। आज और केवल इसी पल को जी भर कर जी लीजिए। यही हक़ीक़त है। बाक़ी सब फसाना है। पाँच करोड़ से ऊपर इन्कम वालों का सरचार्ज तो कम कर दिया गया है लेकिन विदेश यात्राओं पर टीसीएस पाँच से बढ़ाकर बीस प्रतिशत कर दिया गया है। यानी विदेश जाना है तो सरकार के पास रक़म रखकर जाइए।
दूसरे सेक्टर्स को देखें तो किसानों को भी सीधे-सीधे कुछ नहीं दिया गया। रियल एस्टेट सेक्टर जिसे सबसे ज़्यादा उम्मीद थी, उसे भी छुआ नहीं गया। रेलवे में सर्वाधिक उम्मीद यह थी कि रिजर्वेशन की वेटिंग लिस्ट से मुक्ति मिलेगी लेकिन इस तरफ़ भी कुछ नहीं किया गया। पहले जब रेलवे बजट अलग हुआ करता था तो बहुत कुछ होता था, लेकिन अब तो महसूस ही नहीं होता कि रेलवे की तरफ़ भी वित्त मंत्री का ध्यान गया होगा।
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