देश में युवक-युवतियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र एक समान 21 साल करने का कानून अटक गया है। इस क्रांतिकारी कदम की घोषणा 2020 में हुई थी, लेकिन, इस संबंध में लाए गए विधेयक पर विचार कर रही संसद की स्थायी समिति ने अब इसे दो रिसर्च संस्थाओं को भेज दिया है।
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज इसके सामाजिक पहलू पर अध्ययन करेगा। वहीं, इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट, आणंद ग्रामीण पहलू पर विचार करेगा। स्थायी समिति के सूत्रों ने बताया कि यह कानून राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक रूप से उलझा हुआ है, जिनसे जातीय और जनजातीय समीकरण गड़बड़ा सकते हैं।
कुछ महीनों में MP छत्तीसगढ़, राजस्थान समेत 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं। MP-छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति की आबादी खासा सियासी प्रभाव रखती है। इनमें कम उम्र में शादी आम बात है। ऐसे में केंद्र को लगता है कि इस फैसले से कहीं वह तबका नाराज न हो जाए।
कई धर्मों के 10 कानून बदलने पड़ सकते हैं...
समिति को इस विधेयक के लिए कई धर्मों के कम से कम 10 निजी कानून बदलने पड़ सकते हैं। यौन हिंसा कानून भी बदलना होगा, जिसमें 18 साल से कम उम्र में शारीरिक संबंधों को बलात्कार माना गया है। यह भी सोचना है कि क्या विवाह की उम्र और शारीरिक संबंध की उम्र अलग-अलग हो सकती है?
छत्तीसगढ़, MP समेत कई राज्यों का दौरा करेगी समिति
संसद की समिति ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, MP, महाराष्ट्र जैसे राज्यों की जनजातीय प्रथाओं को बारीकी से समझने के लिए दौरा करेगी। सूत्रों के अनुसार, विचार-विमर्श की इस पूरी प्रक्रिया में 1 साल लग सकता है। सुप्रीम कोर्ट में भी मामला विचाराधीन है। उससे भी मेल बैठाना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने शादी की उम्र लड़कों के लिए 21 और लड़कियों के लिए 18 साल होने पर सवाल किया था कि यह भेद क्यों? इस पर सरकार ने विधेयक बनाकर स्थायी समिति को दिया था।
युवतियों की न्यूनतम उम्र में आखिरी परिवर्तन 1978 में हुआ था, तब उम्र 15 से बढ़ाकर 18 साल की गई थी। इसलिए जरूरी यह कानून: यूनिसेफ के अनुसार, देश में हर साल 15 लाख लड़कियों की शादी 18 से कम उम्र में होती है। 15-19 साल की 16% युवतियां विवाहित हैं। 2005 से 2015 के बीच इसमें कमी आई थी, पर वह नाकाफी है।
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