राजस्थान में एक बार फिर कांग्रेस के भीतर ठन गई है। मुद्दा है पेपर लीक का। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पार्टी नेता सचिन पायलट का गुट फिर आमने-सामने है। गहलोत ने संकेत दिया है कि पेपर लीक मामले में कोई बड़ा अफ़सर ज़िम्मेदार नहीं है। पायलट ने बात को पकड़ लिया। वे कह रहे हैं कि पेपर तो तिजोरी में बंद रहते हैं। बिना किसी अफ़सर के शामिल हुए ये बाहर कैसे आ सकते हैं? ये तो जादूगरी हो गई। जादूगर गहलोत को कहा जाता है। इसलिए यह शब्द सीधे गहलोत पर हमला माना जा रहा है।
पायलट यहीं नहीं रुके। उन्होंने कहा- अफ़सरों को बचाना बंद कीजिए। हमने देखा है- शाम को अफ़सर रिटायर होते हैं और रात को ही उन्हें राजनीतिक नियुक्ति मिल जाती है। यह सब बंद होना चाहिए। उनका कहना है कि अफ़सरों की बजाय पार्टी के कार्यकर्ताओं को राजनीतिक नियुक्ति मिलनी चाहिए। चाहे वो कार्यकर्ता पायलट समर्थक हो या किसी और का समर्थक हो। कुल मिलाकर पायलट ने पूरी तरह अब चुनावी धुन अपना ली है।
सरकार के फ़ैसलों के खिलाफ सत्ताधारी पार्टी के नेता ही बोलने लगें तो माना जाता है कि किसी न किसी रूप में एंटी इंकम्बेंसी कम होती है। इसका फ़ायदा आख़िर पार्टी को ही मिलता है। लोग मानते हैं कि जनता और कार्यकर्ताओं की बात उठाने वाला कोई तो पार्टी में है। लोगों का सरकार के प्रति ग़ुस्सा कम होता है। ख़ैर चुनावी मूड है और आगे भी वार- पलटवार चलते रहेंगे। राजस्थान वैसे भी काफ़ी समय से चर्चा में हैं।
उधर झारखण्ड में हेमंत सोरेन भाजपा के खिलाफ आग- बबूला हो रहे हैं। उनका कहना है कि सम्मेद शिखर का मामला भाजपा का हिंडन एजेण्डा है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा जैन समुदाय और आदिवासियों को लड़ाना चाहती है। उसे इस लड़ाई में अपने एकतरफ़ा वोट दिखते हैं। झारखण्ड ही नहीं, पूरे भारत में वोट बटोरने का हिंडन एजेण्डा है यह।
दरअसल, वोट की ख़ातिर ही सोरेन भी आग उगल रहे हैं। झारखण्ड में उनकी पार्टी आदिवासियों के वोट पर ही ज़िंदा है। सम्मेद शिखर जिस पहाड़ पर है, उस मरांग बुरु को यहाँ के आदिवासी लोग अपना देवता मानते हैं। यही वजह है कि हेमंत सोरेन जब-तब इस विवाद को हवा देते रहते हैं और आदिवासियों के पक्ष में बोलते हुए पिछले दिनों हुए विवाद का ठीकरा भाजपा के माथे फोड़ते रहते हैं।
जहां तक भाजपा की रणनीति का सवाल है, उसका मंतव्य जैन वोटों को लुभाने का ही है। हिंडन एजेण्डा किसका क्या है, यह तो स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता लेकिन यह तय है कि इस विवाद से चुनावी राजनीति ज़रूर जुड़ी हुई है।
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