पिछले हफ्ते दिल्ली के मुंडका मेट्रो स्टेशन के पास आगजनी की भीषण दुर्घटना हुई। इस आग में जलकर 27 लोगों की मौत हो गई। इस हादसे में मरने वालों की संख्या कहीं ज्यादा हो सकती थी, अगर उस दिन क्रेन ऑपरेटर दयानंद तिवारी ने लोगों को न बचाया होता।
दयानंद ने धू-धू कर जलती इमारत से 50 लोगों को सुरक्षित निकाला। इसके बाद लोगों के लिए वे महीसा बन गए हैं। ये उनकी सूझ-बूझ थी कि उन्होंने दमकल गाड़ियों के आने का इंतजार नहीं किया और हिम्मत दिखाते हुए खुद ही लोगों को रेस्क्यू करने लगे। घटना को याद करते हुए वे कहते हैं कि उन्होंने जो किया वह एक इंसान होने के नाते उनका फर्ज था।
हादसे के वक्त इमारत के पास से गुजर रहे थे दयानंद
45 वर्षीय दयानंद ने बताया कि वे शुक्रवार 13 मई को क्रेन ड्राइव करते हुए अपने भाई के साथ इमारत के पास से गुजर रहे थे। तभी उन्होंने इमारत से धुआं उठते देखा। तीन मंजिला इमारत में सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं थी और लोगों के बाहर आने के लिए सिर्फ एक ही रास्ता था। उन्होंने इमारत की खिड़कियों से लोगों को बाहर निकलने की कोशिश करते देखा।
उसी पल उन्होंने तय किया वे फायर टेंडर्स के आने का इंतजार नहीं करेंगे और जो लोग फंसे हैं उन्हें बाहर निकालने की कोशिश करेंगे। उन्होंने बताया कि वे और उनके भाई अनिल सड़क के दूसरी तरफ थे। सड़क पर ट्रैफिक कम था, ऐसे में वे तुरंत डिवाइडर तोड़कर इमारत के पास पहुंचे।
क्रेन से तोड़ा इमारत का ग्लास पैनल
दयानंद ने बताया- 'इमारत में से निकलने का कोई रास्ता नहीं था, ऐसे में क्रेन की मदद से मैंने इमारत का ग्लास पैनल तोड़ा। इसके बाद हमने 4-6 के बैच में लोगों को इमारत से रेस्क्यू किया। हम 50 लोगों की जान बचा पाए।'
उन्होंने आगे कहा- 'इसके बाद आग और धुएं के चलते इमारत के चारों तरफ तापमान बढ़ने लगा। धुएं के चलते रेस्क्यू ऑपरेशन में दिक्कतें आने लगीं। इस वजह से हमें रेस्क्यू ऑपरेशन रोकना पड़ा।'
25 साल से मुंडका में रह रहे हैं दयानंद
दयानंद मूल रूप से बिहार के रहने वाले हैं। वे करीब 25 साल पहले मुंडका आकर बसे। उनके दो बच्चे हैं। वे कहते हैं कि इंसान होने के नाते एक-दूसरे की मदद करना हमारा फर्ज है। मैं नहीं समझता कि मैंने कुछ अलग किया है। भगवान की माया कोई नहीं समझ सकता। उस दिन ईश्वर ने मुझे उस जगह भेजा ताकि मैं लोगों की मदद कर सकूं।
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