दिल्ली हाईकोर्ट का कहना है कि अगर शारीरिक संबंध सहमति से बन रहे हैं तो अपने साथी की जन्मतिथि के न्यायिक सत्यापन की जरूरत नहीं होती। अदालत ने नाबालिग से कथित दुष्कर्म के मामले में एक व्यक्ति को जमानत देते हुए यह बात कही।
दस्तावेजों में लड़की की जन्मतिथि अलग-अलग
दरअसल, एक लड़की ने कोर्ट ने युवक के खिलाफ दुष्कर्म का आरोप लगाया था। लड़की खुद को नाबालिग बता रहा थी। इन आरोपों के खिलाफ लड़के ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। कोर्ट में लड़की की ओर से पेश किए आधार कार्ड में उसकी जन्मतिथि 1 जनवरी 1998 थी। वहीं, पैन कार्ड में जन्म का साल 2004 और स्कूल के दस्तावेजों में यह साल 2005 था।
आरोपी ने कोर्ट में दावा किया कि उसके खिलाफ बाल शोषण संबंधी कानून के प्रावधानों का इस्तेमाल करने के लिए लड़की अपनी सुविधा से जन्म की तारीख बता रही है। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने आरोपी को राहत दे दी।
कोर्ट ने कहा- मामला हनीट्रैप का लगता है
न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने आदेश में कहा कि लड़की के आधार कार्ड में जन्मतिथि 1 जनवरी 1998 है। यह लड़की की जन्मतिथि के सबूत के लिए काफी है। साफ है कि याचिकाकर्ता ने नाबालिग से संबंध नहीं बनाया है। यह हनीट्रैप का मामला लगता है। लड़की का कहना है कि उसके साथ 2019 और 2021 में दुष्कर्म हुआ। वहीं, उसने मुकदमा दर्ज करने में इतनी देर क्यों की इसका भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिल सका है।
अदालत ने आरोपी को 20 हजार के मुचलके पर रिहा करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि आरोपी से उसका पासपोर्ट जमा करने और मामले से संबंधित लोगों से बात न करने का आदेश दिया है।
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