इस बार गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या और गणतंत्र दिवस पर एक नया मौसम आया। ठण्ड ख़त्म होने के मौक़े पर ठण्ड का मौसम। मावठा भी। बारिश भी। धुँआधार। गणतंत्र दिवस की परेड पर कोहरा छाया था। … और बसंत पंचमी पर हो रही अनगिनत शादियों का आनंद कम हो रहा था।
धूप खाने, धूप ओढ़ने और धूप ही बिछाने के इस मौसम में, जाने किस कालिदास ने काले- काले मेघ भेज दिए। ठण्डी हवा के झोंके की तरह। कुछ गाँवों की पगडण्डियाँ पानी में डूबी हुई हैं। खेतों की मेड़ अब पगडण्डियों का मुँह चिढ़ा रही हैं। जैसे कई शहरों की सड़कें कभी नगर निगम तो कभी विकास प्राधिकरण की तरफ़ अपने ऊबड़- खाबड़ दाँत दिखाती रहती हैं।
तीन दिन हो चुके। सुबह, अब सुबह नहीं लगती। जैसे सुबह की शक्ल में शाम की मौसी आई हो! दोपहर जैसे सेनापति की कविता। शाम सुहानी तो है, लेकिन वो गोधूली बेला, वो आधा डूबा सूरज, वो पक्षियों का कलरव, उसके चेहरे से ग़ायब है। जैसे किसी ने सूरज और चाँद दोनों को एक ही गिलास में घोल दिया हो। जैसे रात के चेहरे पर कोई हल्दी पोत गया हो।
शाम, अब शाम नहीं लगती बल्कि कुछ राज्यों की सरकारों की तरह लगती है। अच्छा हुआ। भला हो उस कालिदास का जिसने ठण्ड के इस मौसम में मेघ भेजे। कम से कम मौसम ने ही सही, सरकारों के चेहरे तो धोये! कल्पना में ही सही, असली रूप सामने तो आया! सड़कों का भी असली रूप निखर आया। पोता फेरकर जिन सड़कों को चिकना किया था, उनकी असल शक्ल नज़र आ गई।
बहरहाल, देशभर के मौसम विज्ञानी कह रहे हैं कि अभी एक- दो दिन बाद मौसम खुल जाएगा और फिर ठण्ड का एक दौर आने वाला है। अक्सर, 26 जनवरी के बाद ठण्ड छँट जाती है और हल्की गर्मी लगने लगती है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। बारिश भी पिछले साल देर तक होती रही और वही लेट-लतीफ़ी अब ठण्ड भी कर रही है। गर्मी का जाने क्या होगा?
लगता है बारिश और ठण्ड की तरह इस बार गर्मी भी भीषण रहेगी और देर तक भी। यही हाल रहा तो इस गर्मी में पानी की दिक़्क़त कुछ ज़्यादा ही रहेगी। ख़ासकर, उन इलाक़ों में जहां अक्सर पानी की दिक़्क़त रहती है।
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