देश देख रहा है 2014 से मोदी चौंकाते आए हैं। उनकी राजनीति तन्हाई के नीचे कार्बन पेपर रखकर ऊंची-ऊंची आवाज में बातें करती है। अल्फाज उड़ने लगते हैं हवा में, पर आवाज की शक्ल कभी कागज पर नहीं उतरती। कुल मिलाकर न उनकी लाठी में आवाज होती और न उनके राजनीतिक परोपकार का कोई हाथ होता! हर कोई भौंचक्का रह जाता है जब यकायक फैसले आते हैं और धारणाएं टूटती हैं। राजनीति इसे ही कहते हैं।
गुरुवार शाम तक देवेंद्र फडणवीस खुद को खुदा मान रहे थे। इसके पहले बुधवार शाम को भी वे प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के हाथों इस तरह मिठाई खा रहे थे जैसे ताज सिर पर आ ही गया। गुरुवार शाम होते होते उनके पैरों तले से जमीन खिसक गई। बात यहीं नहीं थमी। मन मसोसकर फडणवीस ने घोषणा की कि एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री होंगे और मैं सरकार से बाहर रहकर सहयोग करूंगा। यहां उनसे फिर एक गलती हो गई।
सरकार से बाहर रहकर सहयोग करने का मतलब राजनीति में रिमोट कंट्रोल होता है।
सब जानते हैं भाजपा या उसकी सरकार में दूसरा रिमोट कंट्रोल हो ही नहीं सकता। फडणवीस कैसे हो सकते थे? आधे घंटे के भीतर जमीन आसमान एक कर दिए गए। आखिर आसमान को जमीन पर लाया गया। जमीन यानी जमीनी नेता एकनाथ शिंदे। शिवसेना जैसी परिवार शासित पार्टी के 55 में से 39 विधायक जिसके साथ हों, वह जमीनी नेता तो हुआ ही। सो फडणवीस जी आखिर शिंदे सरकार में उप मुख्यमंत्री बनाए गए।
पूछा जा सकता है महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके फडणवीस की नाराजगी क्या आगे सरकार चलाने में बाधक नहीं होगी? जवाब सीधा सा है। नहीं। क्योंकि महाराष्ट्र सरकार अब उसी तरह चलती रहेगी जिस तरह गुजरात की सरकार चलती आई है। किसी भी फैसले से पहले उसकी जानकारी जिन्हें होनी चाहिए, होती रहेगी और सरकार निर्बाध चलती रहेगी।
राजनीति में इस तरह के आश्चर्यजनक फैसले पहले भी होते रहे हैं। वीपी सिंह के नाम पर चंद्रशेखर सहमत नहीं थे। देवीलाल ने उन्हें मनाया और कहा कि आप मेरे नाम का अनुमोदन कर दीजिए। चंद्रशेखर ने देवीलाल को नेता चुनने का प्रस्ताव रखा और देवीलाल ने खड़े होकर खुद में जताए गए विश्वास के बूते वीपी सिंह का नाम आगे कर दिया। चंद्रशेखर भौंचक रह गए।… और वीपी सिंह PM चुन लिए गए।
भाजपा में तो यह नई बात है ही नहीं। उसके फैसलों के बारे में तमाम पूर्वानुमान अब तक सटीक नहीं बैठ पाए। उसने हमेशा अपने फैसलों से सब को चौंकाया ही है। खैर इस बार सबसे ज्यादा अपने ही नेता देवेंद्र फडणवीस को पार्टी ने चौंकाया है। हो सकता है यही पार्टी के हित में हो! कम से कम अब भाजपा पर कोई यह आरोप तो नहीं ही लगा सकता कि उसने सत्ता की खातिर उद्धव की सरकार गिरा दी। शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा आखिर शिवसेना पर से ठाकरे परिवार के वर्चस्व को भी खत्म करना चाहती है, क्योंकि उद्धव ने भाजपा से चुनाव पूर्व समझौते को तोड़कर कांग्रेस और राकांपा से मिलकर सरकार बना ली थी।
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