कहानी - महाभारत युद्ध के बाद की घटना है। अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा चिल्लाते हुए चली आ रही थी। वहां श्रीकृष्ण, पांचों पांडव और कुंती सभी खड़े हुए थे। उत्तरा ने श्रीकृष्ण से कहा, 'मेरी रक्षा कीजिए, अश्वथामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रहार मेरे गर्भ पर किया है। मेरे पति अभिमन्यु की मृत्यु हो चुकी है, मेरे गर्भ में उनकी संतान है और ब्रह्मास्त्र एक बार चल जाए तो उसे रोका नहीं जा सकता है। मेरे इस अंश के प्राण ले लेगा। मुझे पांडव वंश बचाना है, मेरी रक्षा करिए।'
कुंती और पांचों पांडव हाथ जोड़कर श्रीकृष्ण के सामने खड़े हो गए और बोले, 'आप हमारी रक्षा करें।'
श्रीकृष्ण ने आंखें बंद कीं और सूक्ष्म रूप में उत्तरा के गर्भ में प्रवेश कर गए। अपनी माया के कवच से उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु को ढंक दिया। जैसे ही ब्रह्मास्त्र आया, श्रीकृष्ण ने उसे शांत कर दिया। इसके बाद पांडवों ने हाथ जोड़कर श्रीकृष्ण से कहा, 'कृष्ण हम मान गए, आप अपने भक्तों की रक्षा के लिए क्या-क्या नहीं करते हैं, आपने गर्भ में जाकर उस शिशु की रक्षा की है।'
श्रीकृष्ण ने कहा, 'जो भक्त मेरे भरोसे होते हैं, मुझे उनका भरोसा रखना पड़ता है।'
सीख - ये पूरी घटना हमें शिक्षा दे रही है कि अगर हम भगवान पर गहरी आस्था और अटूट विश्वास रखेंगे तो भगवान बड़ी-बड़ी ब्रह्मास्त्र जैसी परेशानियों से भी हमें बचा लेंगे।
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