गुजरात की लगभग आधी यानी कुल 182 में से 89 सीटों पर मतदान हो चुका है। हैरत की बात यह है कि पिछली बार यानी 2017 की बजाय इस बार इन सीटों पर चार प्रतिशत कम वोट पड़े हैं। सीधा सा मतलब है कि लोगों में वोटिंग के प्रति उत्साह नहीं था। केवल परंपरागत वोट ही पड़े हैं। चाहे वे भाजपा के पक्ष के हों, कांग्रेस के पक्ष के हों या बचे-खुचे आप के पक्ष के हों!
हर तरफ़ एक ही चर्चा है कि कम वोटिंग में तो सुना है भाजपा हार जाती है। ऐसे में क्या होगा? पहले चरण के बाद भाजपा ने दूसरे चरण के लिए ज़बर्दस्त ताक़त झोंक दी है। क्या इसका मतलब ये है कि पहले चरण में भाजपा को कोई बड़ा ख़तरा दिखाई दे रहा है?
यहाँ तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपनी चुनावी रैलियों में 151 सीटों का दावा नहीं कर रहे हैं, बल्कि कह रहे हैं कि भाजपा की सरकार फिर बनेगी।
इस बीच राजनीतिक जानकारों का कहना है कि चूँकि वोटिंग परसेंटेज में कोई बड़ा उलटफेर नहीं हुआ है इसलिए सत्ता में उलटफेर की भी संभावना कम ही है। ज़्यादा वोटिंग होती तो इसे उलटफेर का संकेत माना जा सकता था, क्योंकि वोटिंग परसेंटेज जब बहुत ऊपर जाता है तो माना जाता है कि लोग ग़ुस्से में घर से निकले हैं और उनका उद्देश्य सत्ता बदलना ही रहा होगा।
लेकिन इस बार गुजरात में ऐसा कुछ नहीं हुआ है, इसलिए बदलाव की संभावना लगती तो नहीं है। देखना यह है कि 8 दिसंबर को क्या होता है! इस बीच चर्चा हिमाचल की। चुनाव वहाँ भी गुजरात के लगभग साथ ही हुए हैं। दोनों राज्यों का चुनाव परिणाम भी एक ही दिन, 8 दिसंबर को आना है, लेकिन कोई भी हिमाचल की चर्चा नहीं करना चाहता।
कुछ जानकारों का कहना है कि इस बार यहाँ कांग्रेस का पलड़ा भारी लग रहा है। वैसे भी भाजपा के खिलाफ यहाँ एंटी इंकमबेन्सी काम कर ही रही थी। हालाँकि, चमत्कार कहीं भी हो सकता है। उधर गुजरात में बची हुई 91 सीटों पर पाँच दिसंबर को मतदान होना है।
कांग्रेस के बड़े नेता कुछ हद तक जागे हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे और अशोक गहलोत ने गुजरात में डेरा डाल रखा है, लेकिन उतनी धूमधाम से नहीं, जैसा भाजपा वाले कर रहे हैं। 3 दिसंबर की शाम इन बची हुई सीटों पर भी चुनावी शोर थम जाएगा। 4 दिसंबर को घर- घर प्रचार के अलावा कोई रैली या सभा नहीं हो पाएगी। इंतज़ार है 8 दिसंबर का।
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