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भास्कर ओपिनियनये तीसरा आदमी कौन है?:वो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है, वो सिर्फ़ रोटी से खेलता है…

3 महीने पहले
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संसद में हंगामा है। मुद्दे मौन हैं। समस्याएँ गौण हैं। हर नेता सिर्फ़ चिल्ला रहा है। जैसे पूछ रहा हो- ये आम आदमी कौन है? संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण की शुरुआत हंगामा, प्रदर्शन के साथ हुई। विपक्ष अडाणी मामले की जाँच जेपीसी (ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी) से कराने पर अड़ा हुआ है। उसका यह भी कहना है कि हमें संसद में बोलने नहीं दिया जाता। हमारे माइक साइलेंट कर दिए जाते हैं। यह कैसी आज़ादी है? यह कैसा लोकतंत्र है?

दूसरी तरफ़ सत्ता पक्ष सोमवार को विपक्ष से भी ज़्यादा आक्रामक दिखा। उसने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ मोर्चा खोला। सत्ता पक्ष इस बात पर अड़ गया कि राहुल गांधी ने लंदन में भारत की बदनामी की। भारतीय संसद की बदनामी की, इसलिए वे सदन में आकर बिना शर्त माफ़ी माँगें। इसके जवाब में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे ने आग में घी डाला। कहा- सही तो है। भाजपा के लोग इस देश में लोकतंत्र को सरेआम कुचल रहे हैं।

वे देश को एक तरह की तानाशाही की ओर ले जा रहे हैं। दरअसल, राहुल गांधी ने पिछले दिनों अपनी इंग्लैंड यात्रा के दौरान ब्रिटिश पार्लियामेंट, केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी और प्रवासी भारतीयों के एक समूह के बीच भाषण दिया था। उन्होंने वहाँ कहा कि कभी भारत खुले विचारों के लिए जाना जाता था। फ़िलहाल वो खुलापन भारत से ग़ायब है। वहाँ की संसद में विपक्ष की कोई अहमियत नहीं रही। विपक्षी नेता बोलने को खड़े होते हैं तो उनके माइक बंद कर दिए जाते हैं।

सत्ता पक्ष राहुल के इस बयान को भारत के खिलाफ मान रहा है। अगर राहुल के बयान का विश्लेषण किया जाए तो कुछ हद तक चीजें सही कही जा सकती हैं लेकिन यह बयान तो हास्यास्पद ही कह जाएगा कि विपक्षी नेता केम्ब्रिज और हॉर्वर्ड में तो बोल सकते हैं लेकिन भारत की किसी यूनिवर्सिटी में बोलने की उन्हें इजाज़त नहीं है। यह कुछ ज़्यादा ही हो गया। विपक्षी नेताओं को यूनिवर्सिटी में भाषण देने से आख़िर कौन रोक रहा है?

कुल मिलाकर, किसी ने किसी की नहीं सुनी। हंगामे के बीच संसद की कार्यवाही दिनभर के लिए टाल देनी पड़ी। लोगों के मुद्दों से न किसी को कोई वास्ता रहा, न किसी ने आम आदमी की परवाह की। दलीय राजनीति से ऊपर उठकर लोगों तक पहुँचने या उनकी वास्तविक समस्याओं को पहचानने की किसी को फ़ुरसत नहीं है। सब के सब अपने निजी या दलगत स्वार्थों में उलझे हुए हैं। ऐसे में याद आते हैं कवि धूमिल और उनकी ये कविता -

“एक आदमी, रोटी बेलता है। एक आदमी रोटी खाता है। एक तीसरा आदमी भी है, जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है। वो सिर्फ़ रोटी से खेलता है, मैं पूछता हूँ- ये तीसरा आदमी कौन है? मेरे देश की संसद मौन है।”