आज होली है। होली राग है। रंग है। उल्लास है। प्रेम है। करुणा है। समरस है। पाँव जब नृत्य करने लगें। मन में जब संगीत बज उठे। मन मदन नाच उठे। तो समझिए होली है। होली तल्लीनता का। मदहोशी का। नृत्य का और हंसी का सप्तरंगी उत्सव है। बाक़ी सब त्योहार मनाए जाते हैं। एक होली ही है, जो खेली जाती है। देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीक़ों से होली खेली जाती है।
बनारस में मसाने की होली होती है। मणिकर्णिका घाट, जहां चिता की राख कभी बुझती नहीं, जमाने भर से अघोरी और पहुँचे हुए साधु भगवान शंकर को आराध्य मानकर होली खेलते हैं। गाते हैं-
खेले मसाने में होरी, दिगंबर खेले मसाने में होरी। नाचत गावत डमरूधारी, छोड़ें सर्प गणन पिचकारी, पी के प्रेत ढपोरी। दिगंबर खेले मसाने में होरी।
अब आते हैं ब्रज की होली पर। यहाँ होरी खेली तो जाती है, गाई भी जाती है। जैसे-
आज बिरज में होरी रे रसिया… जैसे - धूम मची है ब्रज में आज, खेले कान्हा होरी…
ब्रज में लट्ठमार होली भी होती है। बरसाना में। बरसाना में इसलिए, कि राधाजी यहाँ की थीं। राजा ब्रसभानु की बेटी। अब सवाल उठता है कि देशभर की होली से दस- बारह दिन पहले ही ये लट्ठमार होली क्यों हो जाती है? जवाब सीधा - सा है। देशभर की होली से बरसाने की होली का कोई वास्ता नहीं है। क्योंकि हम जो देशभर में होली मनाते हैं ये भक्त प्रह्लाद वाली होली है। उनकी बुआ होलिका जो थी, वह प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई थी। बरसाने की होली राधा- कृष्ण की होली है। प्रेम की होली। कृष्ण राधा पर और गोपियों पर प्रेम के फूल बरसाते थे।
इसी परंपरा की होली है यह। पहले फूलों से खेली जाती थी। फिर फूलों के रस- रंग से। अब रंगों से खेली जाती है। भगवान शंकर की होली भी प्रसिद्ध है। इसमें हंसी- ठिठोली भी बहुत है। एक कवि हुए हैं माधव। उन्होंने लिखी - शंकर संग होली। इसमें बड़ा गंभीर हास्य है-
भस्म चढ़ावत शंकर को, अहि लोचन छार गिरी झरिके। ता की फुंफकार लगी शशि को, अमृत बूँद गिरी झरिके । मृगराज सजीवन होई गयो, गौरां जो हंसी, मुँह यों करिके।
अर्थात्… कवि कह रहे हैं कि माता पार्वती एक बार भगवान शंकर के ललाट पर भस्म लगा रही थीं। भस्म की कुछ रज भगवान के गले में लिपटे सर्प की आँख में पड़ी। सर्प ने फुंफकार मारी। भगवान के ललाट पर स्थित चंद्रमा को लगी। चंद्रमा से अमृत की बूँद गिरी। अमृत गिरते ही भगवान ने जिस मृग की छाल लपेट रखी थी, वह मृग सजीव होकर चल दिया। और शंकर जी को बिना मृग छाल के देखकर गौरां हंस पड़ीं। कुल मिलाकर होली हर हाल में हास्य और तरंग का पर्व है। खूब खेलिए होली।
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