पंजाब के रहने वाला 92 वर्षीय सरवन सिंह साल 1947 में हुए बंटवारे के समय अलग हुए अपने भतीजे से मिलेंगे। सरवन अपने भाई के बेटे मोहन सिंह से करतारपुर साहिब गुरुद्वारा में मुलाकात करेंगे, यह गुरुद्वारा पाकिस्तान में सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव का अंतिम विश्राम स्थल है। 75 साल बाद अपने भतीजे से मिलने के लिए सरवन काफी खुश हैं।
सरवन सिंह के नाती परविंदर ने बताया कि बंटवारे के समय मोहन सिंह लगभग छह साल के थे। अब उनकी वहां एक नई पहचान है, एक मुस्लिम नाम है। परिवार से बिछड़ने जाने के बाद पाकिस्तान में एक मुस्लिम परिवार ने उनकी परवरिश की। वर्तमान में मोहन सिंह पाकिस्तान के 371 चक्क में अफजल खालिफ के नाम से रह रहे हैं।
भारत और पाकिस्तान के यूट्यूबर्स ने मिलाया
भारत और पाकिस्तान के दो यूट्यूबर्स ने दोनों रिश्तेदारों को फिर से जोड़ने में मदद की है। जंडियाला के एक यूट्यूबर ने विभाजन की कई कहानियों को रिकॉर्ड किया। कुछ महीने पहले वह सरवन सिंह से मिले और अपने चैनल पर उनके जीवन की कहानी का वीडियो पोस्ट किया। सीमा पार, एक पाकिस्तानी यूट्यूबर ने मोहन सिंह की कहानी सुनाई, जो विभाजन के समय अपने परिवार से अलग हो गया था।
भतीजे के हाथ के दो अंगूठों से चाचा ने की पहचान
ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले पंजाब मूल के एक व्यक्ति ने दो वीडियो देखे और रिश्तेदारों को मिलाने में मदद की। एक वीडियो में, सरवन ने अपने लापता भतीजे की पहचान बताते हुए कहा कि उसके एक हाथ पर दो अंगूठे थे और उसकी एक जांघ पर बड़ा तिल था। दूसरी ओर, पाकिस्तानी यूट्यूबर की ओर से पोस्ट किए गए वीडियो में भी मोहन के बारे में ऐसी बातें शेयर की गई थीं। इससे सरवन ने मोहन को पहचान लिया।
दंगों में परिवार को 22 सदस्यों की मौत, 23 लापता
परविंदर ने बताया कि नाना का परिवार चक गांव में रहता था, जो अब पाकिस्तान में है। बंटवारे के दौरान हुए दंगों में उनके परिवार के लगभग सभी 22 सदस्यों को मार दिया गया था, जबकि 23 सदस्य लापता हो गए थे। किसी तरह सरवन और उनके परिवार के कुछ सदस्य सीमा पार करने में कामयाब रहे। इस दौरान मोहन उनसे बिछड़ गए थे।
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