सैटेलाइट की दुनिया में भारत ने एक बड़ी कामयाबी हासिल की है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने रविवार सुबह चित्रदुर्ग के एरोनॉटिकल टेस्ट रेंज से री-यूजेबल लॉन्च व्हीकल (RLV) का सफल परीक्षण किया। री-यूजेबल लॉन्च व्हीकल सैटेलाइट भेजने के बाद वापस धरती पर लौट आएगा। इसके जरिए दोबारा किसी और सैटेलाइट को लॉन्च किया जा सकेगा। अब तक के सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल आसमान में जाने के बाद नष्ट हो जाते थे।
ISRO ने जानकारी दी है कि दुनिया में पहली बार विंग बॉडी एयरक्राफ्ट को हेलिकॉप्टर से साढ़े चार किलोमीटर की ऊंचाई पर ले जाकर हवाई जहाज की तरह रनवे पर लैंडिग के लिए छोड़ा गया। ISRO के मुताबिक RLV मूल रूप से स्पेस प्लेन है, जिसे बहुत ज्यादा ऊंचाई से 350 किलोमीटर प्रतिघंटे की तेज रफ्तार पर लैंडिग के लिए डिजाइन किया गया है। तकनीकी तौर पर ऐसा करने के लिए लो लिफ्ट और ड्रैग का सही अनुपात रखना जरूरी होता है, ताकि लैंडिंग के दौरान एयरक्राफ्ट का संतुलन बना रहे।
RLV से सैटेलाइट लॉन्चिंग से मिशन की लागत कम होगी
ISRO के मुताबिक, RLV भारतीय रक्षा अनुसंधान संगठन (DRDO) और इंडियन एयरफॉर्स की मदद से बनाया गया है। RLV की सफल लॉन्चिंग के बाद अब सैटेलाइट भेजने में आने वाली लागत में कमी आएगी। यानी भारत भविष्य की सैटेलाइट लॉन्चिंग मिशन और कम खर्च में पूरी कर सकेगा।
लॉन्चिंग के आधे घंटे बाद RLV खुद लैंड कर गया
सुबह 7:10 बजे RLV LEX ने उड़ान भरी और आधे घंटे बाद यानी 7:40 बजे टेस्ट रेंज एयर स्ट्रिप पर उतर गया। इसे 4.5 किलोमीटर की ऊंचाई पर ले जाया गया और 4.6 किलोमीटर की रेंज पर छोड़ा गया। इसके कुछ देर बाद RLV लैंडिंग गियर के साथ खुद ही एयर स्ट्रिप पर लैंड हुआ।
री-यूजेबल लॉन्च व्हीकल पर दुनिया की नजर
कई बड़े देश री-यूजेबल लॉन्च व्हीकल पर काम कर रहे हैं। एलन मस्क की स्पेस एक्स कंपनी पहली उन प्राइवेट आर्गनाइजेशन में से एक है, जिसने री-यूजेबल लॉन्च व्हीकल का सफल परिक्षण किया था। स्पेस एक्स ने 2015 में री-यूजेबल लॉन्च व्हीकल की सफल सेल्फ लैंडिंग की थी। कंपनी ने इसे फाल्कन 9 और फाल्कन हेवी नाम दिया था। री-यूजेबल लॉन्च व्हीकल पर फ्रांस, अमेरिका, जापान, चीन जैसे देशों समेत कई प्राइवेट आर्गनाइजेशन भी काम कर रही हैं।
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