देश में राजद्रोह कानून को लेकर पिछले कुछ साल में बहुत सारे सवाल खड़े हुए हैं। विपक्ष लगातार सरकार पर इस कानून के दुरुपयोग का आरोप लगाता रहा है। कई बार सुप्रीम कोर्ट भी इस तरफ इशारा कर चुका है। अब सुप्रीम काेर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस आरएफ नरीमन ने इस कानून को खत्म करने की वकालत की है। उन्होंने इस कानून के उपयोग पर सवाल खड़े किए हैं और इसे कोलोनियल माइंडसेट (औपनिवेशिक प्रवृत्ति) वाला कानून बताया है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अनुमति देने का समय
जस्टिस नरीमन ने सरकार की आलोचना करने वालों पर राजद्रोह कानून के तहत कार्रवाई पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा, ‘यह समय राजद्रोह कानूनों को पूरी तरह खत्म करने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अनुमति देने का है।' जस्टिस नरीमन हाल में मुंबई के एक लॉ स्कूल के वर्चुअल कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा, 'दुर्भाग्य से हाल के दिनाें में सरकार की आलाेचना करने वाले युवा, छात्र व स्टैंडअप कॉमेडियंस पर राजद्रोह कानून के तहत केस दर्ज किए गए। यह कानून औपनिवेशिक प्रवृत्ति का है। देश के संविधान में इसके लिए कोई जगह नहीं है।’
भड़काऊ भाषण देने वालों से निपटा नहीं जा रहा
जस्टिस नरीमन ने कहा, 'एक ओर तो राजद्रोह कानून के तहत केस दर्ज किया जा रहा है। वहीं, भड़काऊ भाषण देने वालों से ठीक से निपटा नहीं जा रहा। कुछ लोग एक विशेष समूह के नरसंहार का आह्वान करते हैं, लेकिन इनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं होती। अधिकारी भी उदासीन हैं।'
उन्होंने कहा, 'दुर्भाग्य से सत्ता में उच्च स्तर पर बैठे लोग न केवल ऐसी भड़काऊ भाषा पर खामोश हैं, बल्कि उसका लगभग समर्थन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह जानकर खुशी हुई कि उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने हाल ही कहा था कि हेट स्पीच न केवल असंवैधानिक है, बल्कि एक अपराध है।'
हेट स्पीच पर न्यूनतम सजा का प्रावधान हो
जस्टिस नरीमन ने सुझाव दिया कि संसद को हेट स्पीच के लिए न्यूनतम सजा का प्रावधान करना चाहिए। उन्होंने कहा, 'हालांकि, हेट स्पीच के आरोपी को तीन साल तक की कैद की सजा दी जा सकती है, लेकिन ऐसा वास्तव में कभी होता नहीं है क्योंकि कोई न्यूनतम सजा निर्धारित नहीं है। यदि हम कानून के शासन को मजबूत करना चाहते हैं, तो संसद को न्यूनतम सजा के प्रावधान के लिए कानून लाना चाहिए।'
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