नोबेल शांति विजेता कैलाश सत्यार्थी ने एंटी ट्रैफिकिंग बिल को संसद के मानसून सत्र में पारित करने की मांग की है। सत्यार्थी ने कहा कि मजबूत कानून नेताओं की जिम्मेदारी है। यह देश निर्माण और आर्थिक प्रगति के लिए जरूरी है। जब तक बच्चों को जानवरों से भी कम कीमत पर खरीदा और बेचा जाएगा, कोई भी देश सभ्य नहीं हो सकता।
उन्होंने कहा कि ट्रैफिकिंग पर रोक के लिए कानून, समय पर जांच, ट्रैफिकर्स के लिए सजा और पीड़ितों की सुरक्षा जरूरी है। बच्चे गरिमा, आजादी का अब और इंतजार नहीं कर सकते।
देशभर के बाल अधिकार कार्यकर्ता, सिविल सोसायटी सदस्य और नेता भी इस मांग को लेकर अभियान चलाएंगे। वो अपने-अपने स्थानीय सांसदों से मिलेंगे और बिल पास करने की अपील करेंगे। 2017 में सत्यार्थी की अगुवाई में 12 लाख लोगों ने देश भर में ‘भारत यात्रा’ की थी। बच्चों के यौन शोषण और ट्रैफिकिंग के खिलाफ यह जन-जागरुकता यात्रा 35 दिनों तक चली, जिसमें 22 राज्यों से गुजरते हुए 12,000 किलोमीटर की दूरी तय हुई थी।
ट्रैफिकिंग इन पर्सन्स बिल 2021 के अहम प्वाइंट्स
मेनका गांधी ने लोकसभा में पेश किया था यह बिल
2018 में तत्कालीन केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने यह बिल लोकसभा में पेश किया था। लोकसभा में यह बिल पारित हो गया था, लेकिन राज्यसभा में पेश न हो पाने से यह पारित नहीं हो पाया था। 2019 में नई लोकसभा बनने से इसका अस्तित्व खत्म हो गया। अब इसे नए सिरे से संसद में पेश कर लोकसभा और राज्यसभा में पारित कराना होगा। तभी यह बिल कानूनी रूप ले पाएगा।
कोरोना काल में बाल श्रम और तस्करी के मामले बढ़े
कोरोना महामारी ने देश में सबसे अधिक बच्चों को प्रभावित किया है। इस दौरान बाल मजदूरी और बाल तस्करी के मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (KSCF) का सहयोगी संगठन बचपन बचाओ आंदोलन ( BBA) है। BBA ने कोरोना काल में कानून प्रवर्तन एजेंसियों की मदद से 9,000 से अधिक बच्चों को ट्रेनों, बसों और कारखानों से मुक्त कराया है। वहीं पूरे देश से 265 ट्रैफिकर्स भी गिरफ्तार हुए हैं।
बाल तस्करी के मामले इन 6 राज्यों में सबसे अधिक
सरकारी आंकड़े कहते हैं कि हर दिन 8 बच्चे ट्रैफिकिंग के शिकार होते हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में ट्रैफिकिंग के शिकार बच्चों की संख्या बढ़कर 2,914 हो गई, जो 2018 में 2837 थी। इस तरह एक साल में पीड़ित बच्चों की संख्या में 2.8% की वृद्धि हुई।
बाल तस्करी के मामले 6 राज्यों में सबसे अधिक दर्ज हुए हैं, इनमें राजस्थान, दिल्ली, बिहार, ओडिशा, केरल और मध्यप्रदेश शामिल हैं। NCRB के मुताबिक, 2019 में 73,138 बच्चों के गुम होने की रिपोर्ट दर्ज हुई।
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