कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा में एक प्रश्न के उत्तर में बताया कि सितंबर 2022 तक देश भर की निचली अदालतों में 1.76 करोड़ से ज्यादा मामलों का निपटारा किया है। हाई कोर्ट ने लगभग 15 लाख, वहीं सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2022 तक 29 हजार से ज्यादा मामले निपटाए।
अगर बात करें पिछले 10 सालों में सिविल और क्रिमिनल पेंडिंग केस की तो ये जिला स्तर पर 34 लाख से ज्यादा हैं। हाई कोर्ट में ये लिस्ट 12.5 लाख ज्यादा की है और सुप्रीम कोर्ट में कुल 11 हजार मामले हैं।
रिजिजू ने निचली अदालतों में मामलों पर चिंता जताई थी
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, किरेन रिजिजू ने कहा था कि कई अदालतों में लंबित मामलों की संख्या कुछ महीनों में 5 करोड़ के आंकड़े तक पहुंच सकती है। लंबित मामलों के मुद्दे पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा था कि ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट्स में कमी आ सकती है, लेकिन असली चुनौती निचली अदालतों में है।
रिजिजू ने यह बात दिल्ली हाई कोर्ट में एक कार्यक्रम में कही थी। इस दौरान यहां चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ भी मौजूद थे। रिजिजू ने निचली अदालतों में अपर्याप्त बुनियादी ढांचे के मुद्दे पर भी चिंता जाहिर की थी। उन्होंने बताया कि कुछ महीने पहले तक 4.83 करोड़ लंबित मामले को आंका गया था।
स्टेट कोर्ट में 4.28 करोड़ केस लंबित
सभी राज्यों के कोर्ट में कुल 4.28 करोड़ केस लंबित हैं। सबसे ज्यादा केस उत्तर प्रदेश 1.09 करोड़ में लंबित हैं, इसके बाद दूसरा स्थान महाराष्ट्र हैं, जहां 49.34 लाख केस लंबित हैं।
हाई कोर्ट में कुल 334 वैकेंसीज
सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया में जजों के 6 पद खाली हैं। वहीं सभी हाई कोर्ट में जजों के कुल 334 पद खाली हैं। इसमें इलाहाबाद में सबसे ज्यादा 60 वैकेंसीज हैं।
ये खबर भी पढ़ सकते हैं...
कानून मंत्री बोले- अपना काम छोड़ राजनीति कर रहे जज, कहा- न्यायपालिका में मतभेद-गुटबाजी
केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा था कि न्यायपालिका की कार्यवाही पारदर्शी नहीं है। वहां बहुत राजनीति हो रही है। यह पॉलिटिक्स बाहर से दिखाई नहीं देती है, लेकिन यहां बहुत मतभेद हैं और कई बार गुटबाजी भी देखी जाती है। रिजिजू ने कहा था कि अगर जज न्याय देने से हटकर एग्जीक्यूटिव का काम करेंगे तो हमें पूरी व्यवस्था का फिर से आकलन करना होगा। पढ़ें पूरी खबर...
Copyright © 2023-24 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.