सरकार बनाम सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम विवाद में केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने दिल्ली हाईकोर्ट के एक पूर्व जज का बयान शेयर किया है। जज आर एस सोढ़ी ने एक यू-ट्यूब चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान को हाइजैक कर लिया है। सुप्रीम कोर्ट में जनता का चुना हुआ प्रतिनिधित्व हो तो जनता को ही न्याय मिलता है।
कानून मंत्री ने इसी इंटरव्यू का वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया है। रिजिजू ने सोढ़ी के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि यह एक जज की नेक आवाज है। यही सबसे समझदार नजरिया है। देश के ज्यादा लोगों की यही समझदार राय है। उन्हें भी लगता है कि सुप्रीम कोर्ट में जनता का प्रतिनिधि होना चाहिए। सिर्फ वही लोग संविधान के प्रावधानों और लोगों के मत को नहीं मानते हैं, जो खुद को संविधान से ऊपर मानते हैं।
रिजिजू बोले- लोकतंत्र की खूबसूरती इसकी सफलता
कानून मंत्री रिजिजू ने कहा- भारतीय लोकतंत्र की असली खूबसूरती इसकी सफलता है। जनता अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से स्वयं शासन करती है। चुने हुए प्रतिनिधि लोगों के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं और कानून बनाते हैं। हमारी न्यायपालिका स्वतंत्र है, लेकिन हमारा संविधान सर्वोच्च है।
नवंबर 2022 का वीडियो, पढ़ें पूर्व जज ने क्या कहा...
'जब हमारा संविधान बना था तो इसमें एक सिस्टम था, एक पूरा चैप्टर था कि जज कैसे अपॉइंट होते हैं। जो लोग कहते हैं कि यह प्रणाली असंवैधानिक है, वो संविधान में संशोधन की बात कर सकते हैं। यह संशोधन तो पार्लियामेंट ही करेगा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने संविधान को ही हाइजैक कर लिया है। उन्होंने कहा कि हम खुद को अपॉइंट करेंगे और इसमें सरकार का कोई हाथ नहीं होगा।'
'हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट के अंतर्गत नहीं आता है। ये हर राज्य की स्वतंत्र संस्था है। हाईकोर्ट के जज को सुप्रीम कोर्ट के जज अपॉइंट करते हैं। और सुप्रीम कोर्ट के जज खुद को अपॉइंट कर रहे हैं। ऐसे में हाईकोर्ट के जज जो खुद को राज्य में स्वतंत्र मान बैठे थे, ये सुप्रीम कोर्ट की तरफ देखना शुरू कर देते हैं। सुप्रीम कोर्ट का जिसे जहां भेजने का मन करता है, वहां ट्रांसफर कर देता है।
ऐसी कार्यप्रणाली से हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट के अधीन हो जाता है, जो हमारे संविधान ने कभी कहा ही नहीं। सुप्रीम कोर्ट अपने दायरे में सुप्रीम है, हाईकोर्ट अपने दायरे में सुप्रीम था, लेकिन अब हाईकोर्ट के सारे जज सुप्रीम कोर्ट के पीछे पूंछ हिलाते हैं। यह कोई अच्छी बात है क्या?'
'जो बादशाही पार्लियामेंट की है, वो सुप्रीम कोर्ट खुद लेकर बैठ गया है। जनता ने पार्लियामेंट को अपॉइंट किया है, सुप्रीम कोर्ट के जजों को नहीं। इस लिहाज से सुप्रीम कोर्ट जनता की आवाज हैं या पार्लियामेंट जनता की आवाज है? हमें समझना चाहिए कि कानून बनाने में पार्लियामेंट सुप्रीम है या सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम है? सुप्रीम कोर्ट कानून नहीं बना सकता है। उसका कोई अधिकार नहीं है। फिर तो पार्लियामेंट की कोई जरूरत नहीं है, लेकिन इस समय पार्लियामेंट और सुप्रीम कोर्ट के बीच डेडलॉक जैसी स्थिति हो गई है। दोनों अपने आप को एक-दूसरे से सुप्रीम बताने पर आमादा हैं, तो इसका हल कैसे निकलेगा।'
'देश में अपॉइंटिंग अथॉरिटी राष्ट्रपति के पास है। तो वही तय करेंगे कि वो जो भी अपॉइंटमेंट करेंगे वो किसकी राय से करेंगे। प्रेसिडेंट मंत्री परिषद की मदद से तय करते हैं कि उन्हें किसे अपॉइंट करना है। ऐसे में पार्लियामेंट सुप्रीम हो गया। डेमोक्रेसी में पार्लियामेंट की सुप्रीमेसी को नकारा नहीं जा सकता है। ये तानाशाही नहीं है, सुप्रीम कोर्ट डिक्टेटरशिप की तरफ जा रहा है, लेकिन हमेशा याद रखना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट को लोगों ने नहीं चुना है, इसलिए वह सुप्रीम नहीं हो सकता है।'
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