भास्कर ओपिनियनहिंडनबर्ग की रिपोर्ट:केवल शेयर बाज़ार ही नहीं, हमारा भरोसा भी हिल रहा है चादर की तरह

2 महीने पहले
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बीते कुछ दिनों में कुछ ऐसे हादसे हुए जिन्होंने हम हिंदुस्तानियों के भरोसे को हिलाकर रख दिया। बात अडाणी ग्रुप या उनकी कंपनियों या खुद गौतम अडाणी की नहीं है। उनको तो खुद हिंडनबर्ग ने हिला दिया है। वे क्या हमें डराएँगे?

जहां तक भरोसे की बात है, अडाणी पर विश्वास सरकारें करती होंगी, हम नहीं। विपक्ष उन पर अविश्वास करता होगा, हम नहीं। क्योंकि हमारा उनसे चंद शेयरों के अलावा कोई वास्ता वैसे भी नहीं है। हमारे विश्वास को, भरोसे को तो हिलाया है उन संस्थानों ने जिन्होंने अडाणी ग्रुप को बेइंतहा लोन दे रखा है। जिन बैंकिंग या वित्तीय संस्थानों पर हम भरोसा करते हैं वे ढंग के तो इस देश में दो ही हैं। स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया यानी एसबीआई और लाइफ़ इन्श्योरेंस कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया यानी एलआईसी। इन दोनों का ख़ासा क़र्ज़ अडाणी ग्रुप पर चढ़ा हुआ है।

स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया यानी एसबीआई और लाइफ़ इन्श्योरेंस कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया यानी एलआईसी। इन दोनों का ख़ासा क़र्ज़ अडाणी ग्रुप पर चढ़ा हुआ है।
स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया यानी एसबीआई और लाइफ़ इन्श्योरेंस कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया यानी एलआईसी। इन दोनों का ख़ासा क़र्ज़ अडाणी ग्रुप पर चढ़ा हुआ है।

रिज़र्व बैंक ने इनसे और इन जैसे अन्य संस्थानों से हिसाब माँगा है कि बताइए, किसने कितना पैसा अडाणी को दे रखा है और कितना देने वाले हैं? ज़ाहिर है सभी ने रिज़र्व बैंक को अपनी- अपनी मंशा बता ही दी होगी] लेकिन आँकड़ों का खुलासा अब तक नहीं हो पाया है। खुलासा हो भी जाए तो कोई क्या कर लेगा? कई माल्या- काल्या इस देश के सरकारी बैंकों को लूट कर रफूचक्कर हो गए। किसी ने क्या कर लिया?

हालाँकि धीरे-धीरे ही सही, शेयर बाज़ार की गिरावट में कुछ स्तर तक कमी आई है, लेकिन संसद का पारा बेहद गर्म है। दरअसल पिछले नौ साल में पहली बार विपक्ष के हत्थे कोई तगड़ा मामला चढ़ा है। यही वजह है कि इस बार समूचा विपक्ष मत चूके चौहान की शैली में आगे बढ़ रहा है। जहां तक सरकार का सवाल है, वह अब तक इस पूरे मामले में चुप्पी साधे हुए है। उसने बस इतना कहा है कि इस मामले से सरकार का कोई लेना- देना नहीं है।

दरअसल पिछले नौ साल में पहली बार विपक्ष के हत्थे कोई तगड़ा मामला चढ़ा है। यही वजह है कि इस बार समूचा विपक्ष मत चूके चौहान की शैली में आगे बढ़ रहा है।
दरअसल पिछले नौ साल में पहली बार विपक्ष के हत्थे कोई तगड़ा मामला चढ़ा है। यही वजह है कि इस बार समूचा विपक्ष मत चूके चौहान की शैली में आगे बढ़ रहा है।

विपक्ष संसदीय समिति से जाँच कराने पर तुला हुआ है, जबकि कुछ अडाणी समर्थक विशेषज्ञ कहते फिर रहे हैं कि संसदीय समिति में कौन से वित्तीय विशेषज्ञ बैठे हैं जो मामले को समझ भी लेंगे और दूध का दूध, पानी का पानी कर देंगे? सरकार कह रही है कि सेबी इस मामले की जाँच कर रही है। इसलिए और किसी जाँच की फ़िलहाल कोई ज़रूरत नहीं है।

सब जानते हैं अडाणी ग्रुप किसके क़रीब और किससे दूर है। जो भी हो, संसद का वक्त ज़ाया हो रहा है, लेकिन यह भी कोई नई बात नहीं है। जो आज सत्ता में बैठे हैं वे भी जब विपक्ष में थे तब भी कुछ अनोखा नहीं घट रहा था। तब भी कई-कई दिन तक संसद के दोनों सदन ठप पड़े रहते थे और जो आज विपक्ष में बैठे हैं, वे भी इस तरह संसद के वक्त को लेकर गीत गाया करते थे।

कुल मिलाकर यह सत्ता का खेल है। ऐसा ही रहता है। चाहे कुर्सी पर ये बैठे हों या वो। केवल चेहरे बदलते हैं। कार्यशैली और काम लगभग एक जैसे ही रहते हैं। जब तक वोट देते समय हम समझदारी नहीं दिखाएँगे, संसद और विधानसभाओं में ऐसे ही लोग आते रहेंगे जिन्हें न तो हमारे भरोसे की कद्र होगी और न ही हमारे वोट की।

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