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मां की उम्र से भी डाउन-सिंड्रोम का रिश्ता:1 क्रोमोजोम ज्यादा होने से होती है बीमारी-यूरोप में 92% बच्चों को कोख में मार देते हैं

नई दिल्लीएक वर्ष पहले
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हर साल 21 मार्च को वर्ल्ड डाउन सिंड्रोम डे मनाया जाता है। डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों की बेहतरी और जागरूकता के लिए 2006 से संयुक्त राष्ट्र इसे मना रहा है। इस बीमारी के डर का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि यूरोप में इससे पीड़ित 92% बच्चों को कोख में ही मार दिया जाता है। इस बीमारी का अब तक कोई कारगर इलाज नहीं मिल पाया है। लेकिन भारत जैसे देश में उचित जांच के अभाव में हर साल हजारों ऐसे बच्चे जन्म लेते हैं।

तो आइए आज वर्ल्ड डाउन सिंड्रोम डे पर इस बीमारी से जुड़े विभिन्न पहलुओं और इससे बचाव के तरीकों को जानते हैं…

क्या होता है डाउन सिंड्रोम

डाउन सिंड्रोम एक आनुवंशिक यानी जेनेटिक बीमारी है। यह बच्चे को जन्म से ही होती है। इससे पीड़ित बच्चे की सीखने की क्षमता सामान्य बच्चों की अपेक्षा कम होती है। इसके चलते उन्हें रोजमर्रा के जीवन में दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। इस सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों में नाक सीधी न होना, मुंह के बाहर निकली जीभ और सपाट चेहरे जैसे लक्षण देखे जा सकते हैं।

रिसर्च में यह बात सामने आई है कि मां की उम्र जितनी अधिक होगी, बच्चे के डाउन सिंड्रोम से पीड़ित होने का खतरा उतना ज्यादा होगा।

डाउन सिंड्रोम एक जेनेटिक बीमारी है। इसका कोई इलाज नहीं है।
डाउन सिंड्रोम एक जेनेटिक बीमारी है। इसका कोई इलाज नहीं है।

इस वजह से होती है बीमारी, विज्ञान भी नाकाम

सामान्य रूप से प्रेग्नेंसी के दौरान भ्रूण में 23 जोड़े यानी 46 क्रोमोसोम विकसित होते हैं। लेकिन 1000 में से एक मामले में 21वें क्रोमोसोम की एक कॉपी ज्यादा हो जाती है। इसके चलते क्रोमोसोम की कुल संख्या 47 हो जाती है। इससे बच्चों का दिमागी और शारीरिक विकास रुक जाता है।

क्रोमोसोम यानी गुण सूत्र इंसानी शरीर की कोशिकाओं में पाए जाने वाला धागा नुमा संरचना होता है। यह माता-पिता के गुणों को दूसरी पीढ़ी में ट्रांसफर करता है।

डाउन सिंड्रोम एक आनुवंशिक बीमारी है। इसे रोक पाना संभव नहीं हैं। हां, उचित समय पर जांच करके रोकथाम जरूर किया जा सकता है। इस बीमारी का कोई इलाज भी नहीं है। यही वजह है कि विकसित देशों में प्रेग्नेंसी के दौरान जांच में भ्रूण के डाउन सिंड्रोम का पता चलते ही उसे गिरा दिया जाता है। यूरोप डाउन सिंड्रोम से पीड़ित केवल 8% भ्रूण ही जन्म ले पाते हैं। लेकिन हमारे देश में जांच की सुविधाओं के अभाव के कारण ज्यादातर मामले बच्चे के जन्म के बाद सामने आते हैं।

अधिक उम्र में मां बनने पर खतरा ज्यादा

रिसर्च के मुताबिक अधिक उम्र में मां बनने पर बच्चे में डाउन सिंड्रोम का खतरा ज्यादा होता है। भारत में हर साल लगभग 25 हजार बच्चे इस सिंड्रोम से पीड़ित होते हैं।

नेशनल डाउन सिंड्रोम सोसाइटी के अनुसार 35 साल की उम्र में मां बनने पर 350 में से एक बच्चे के सिंड्रोम से पीड़ित होने की संभवना होती है। 40 साल की उम्र में यह 100 में से एक बच्चे को होता है। 45 साल से अधिक उम्र में मां बनने पर बच्चे में डाउन सिंड्रोम का खतरा काफी बढ़ जाता है। इस उम्र में हर 30 में से एक बच्चा डाउन सिंड्रोम के साथ पैदा होता है।

बीमारी लाइलाज, पर बच्चे को दे सकते हैं बेहतर जिंदगी

यह बीमारी बेशक लाइलाज है। लेकिन कुछ कदम उठाकर इससे पीड़ित बच्चों को सामान्य जिंदगी जीने में मदद की जा सकती है। इसके लिए डॉक्टरों की सलाह लेकर बच्चे की बेहतर देखभाल कर उन्हें खास तरह से चीजें सिखाई जा सकती है।