दिल्ली वायु प्रदूषण के मामले में दुनिया का सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर बना हुआ है। कई लोगों, खासतौर पर बुजुर्गों को सांस लेने में दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। स्विट्जरलैंड की फर्म आईक्यू एयर और ग्रीनपीस साउथ ईस्ट एशिया की स्टडी के मुताबिक दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारण 2020 में 54,000 लोगों की मौत हुई है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पिछले सप्ताह दिल्ली में कंस्ट्रक्शन वर्क पर रोक लगा दी गई है। ट्रकों की एंट्री पर बैन है। स्कूल-कॉलेज में छुटि्टयां घोषित कर दी गई हैं। गैस से जुड़ी इंडस्ट्री को छोड़कर बाकी सभी उद्योग धंधों पर रोक लगा दी गई है, लेकिन कोई स्थाई समाधान निकलता नहीं दिखाई दे रहा है। आइए दुनिया के उन 7 देशों के बारे में जानते हैं, जहां किसी समय प्रदूषण एक बड़ी समस्या हुआ करती थी, लेकिन ठोस कदम उठाकर मुसीबत से छुटकारा पा लिया गया।
चीन ने 19 साल तक लड़ी प्रदूषण से लड़ाई
1990 की शुरुआत में चीन की राजधानी बीजिंग की हालत बेहद खराब हुआ करती थी। तेजी से हुए इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट के कारण यहां की हवा दमघोंटू हो गई थी। हवा में PM2.5 पॉल्युटेंट का लेवल इतना ज्यादा हो गया कि कुछ मीटर दूर तक देखना भी मुश्किल हो गया। 2 करोड़ आबादी वाले शहर में हालात बिगड़ते देख 1998 में चीन ने प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई शुरू की।
सबसे पहले कार्बन उत्सर्जन बढ़ाने वाली गाड़ियों में कमी की गई। पूर्वी चीन के नाजिंग में मानव निर्मित जंगल बनाए गए। इससे हर साल 25 लाख टन कार्बन डाई ऑक्साइड को सोखने में मदद मिली और 60 किलो ऑक्सीजन का भी उत्पादन हुआ। इसका परिणाम यह हुआ कि 2013 तक बीजिंग में प्रदूषण कम होना शुरू हो गया और 2017 तक प्रदूषण का लेवल काफी घट गया।
थाईलैंड में सेना ने फैक्ट्रियों की निगरानी की
1.7 करोड़ आबादी वाली थाइलैंड की राजधानी बैंकॉक में एक समय प्रदूषण एक बड़ी समस्या बन गया था। 2019 में यहां के हालात दिल्ली जैसे हो गए थे। स्कूल-कॉलेज बंद करने पड़े थे। इतना ही नहीं फैक्ट्रियों और उद्योग धंधों पर निगरानी रखने के लिए सेना की तैनाती करनी पड़ी थी। लगातार बिगड़ते हालात को सुधारने के लिए थाइलैंड ने कड़े कदम उठाए। इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बढ़ावा दिया गया। पेट्रोल-डीजल से चलने वाली गाड़ियों पर रोक लगा दी गई। सड़कों पर ट्रैफिक कम करने के लिए नहरों में नाव चलाकर ट्रांसपोर्ट के नए विकल्प तलाशे गए।
मैक्सिको ने इलेक्ट्रिक व्हीकल को बढ़ावा दिया
1990 की शुरुआत में मैक्सिको सिटी दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में शामिल था। अमेरिका के पड़ोसी देश मैक्सिको की राजधानी की आबादी तब 90 लाख थी। बढ़ते वायु प्रदूषण के बाद मैक्सिको ने कुछ कड़े कदम उठाए। पेट्रोल-डीजल से चलने वाली गाड़ियों पर लगाम लगाई। कई ऑयल रिफाइनरी तक बंद करनी पड़ी। लोगों को इलेक्ट्रिक व्हीकल्स इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। इन सब कोशिशों का असर यह हुआ कि 2018 आते तक यहां PM 2.5 पॉल्युटेंट का लेवल 300 से घटकर 100 पर आ गया।
फ्रांस ने 3 फैसले लेकर घटाया प्रदूषण
बढ़ते प्रदूषण से यूरोप भी अछूता नहीं रहा। WHO की रिपोर्ट के मुताबिक यूरोप में प्रदूषण के कारण 2019 में 3 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। बेहद सुंदर शहर और फ्रांस की राजधानी पेरिस में भी प्रदूषण की मात्रा बढ़ने लगी थी। 21 लाख आबादी वाले इस शहर में प्रदूषण कम करने के लिए कड़े कदम उठाए गए।
1. पेरिस में वीकेंड पर कार से ट्रैवल करने पर रोक लगा दी गई।
2. पब्लिक ट्रांसपोर्ट फ्री कर दिया गया।
3. कार और बाइक शेयरिंग को बढ़ावा दिया गया।
नीदरलैंड्स में 2025 से सिर्फ इलेक्ट्रिक गाड़ियां मिलेंगी
यूरोपीय देश नीदरलैंड्स के लोग प्रदूषण को लेकर भी बेहद संवेदनशील हैं। यहां ज्यादातर लोग कहीं आने-जाने के लिए साइकिल का उपयोग करते हैं। साल 2015 में इस देश की राजधानी एम्सटर्डम में हवा की क्वालिटी में थोड़ा सा फर्क आया था। इसके बाद यहां की सरकार और लोगों ने इस पर काम करना शुरू कर दिया।
2030 तक नीदरलैंड्स में पेट्रोल-डीजल से चलने वाली सभी गाड़ियों पर रोक लगाने की योजना है। इतना ही नहीं यहां 2025 के बाद सिर्फ इलेक्ट्रिक गाड़ियां ही बिकेंगी।
स्विट्जरलैंड में पार्किंग पर भारी भरकम फीस
उत्तरी स्विटजरलैंड के ज्यूरिख शहर में प्रदूषण कम करने का अनोखा तरीका खोजा गया है। यहां पार्किंग को लिमिटेड करने के लिए पहला घंटा फ्री रखा गया है, लेकिन इसके बाद भारी भरकर फीस लगा दी है। इतना ही नहीं यह भी तय किया गया है कि एक समय में शहर की सड़कों पर कितनी कारें होंगी। कई इलाकों को कार फ्री जोन घोषित कर दिया गया है। स्विट्जरलैंड की कुल आबादी महज 86 लाख है।
डेनमार्क में साइकिल से चलते हैं सूट-बूट पहने लोग
उत्तरी यूरोप के स्कैंडिनेवियाई देश डेनमार्क के लोग प्रदूषण को लेकर बेहद जागरूक हैं। इस देश की कुल आबादी महज 19 लाख है। यहां सूट-बूट पहने लोग सड़कों पर साइकिल चलाते दिख जाते हैं। डेनमार्क की राजधानी कोपनहेगन में लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करना ज्यादा पसंद करते हैं। इस शहर ने 2025 तक कार्बन उत्सर्जन घटाकर 0% तक ले जाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
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