राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता जाने के बाद अब वे राजनीतिक पार्टियाँ भी कांग्रेस के साथ आ गई हैं, जो अब तक कांग्रेस से दूर भाग रही थीं। जैसे आप पार्टी और तृणमूल कांग्रेस। सोमवार को इन सब ने मिलकर संसद में प्रदर्शन किया। सभी विपक्षी पार्टियों के सदस्य काले कपड़े पहनकर लोकसभा और राज्यसभा में पहुँचे थे। कांग्रेस जिस तरह संसद से सड़क तक प्रदर्शन की बात कर रही है, हो सकता है आगे चलकर विरोध प्रदर्शन के इस पूरे चक्र में सभी विपक्षी पार्टियाँ कांग्रेस के साथ आ जाएँ।
दरअसल, विपक्षी पार्टियों को लग रहा है कि संसद सदस्यता जाने के कारण राहुल गांधी के प्रति लोगों की सहानुभूति उपजेगी और अगर इस सहानुभूति का कोई फ़ायदा वोट के रूप में कांग्रेस को होता है तो ये छोटे दल भी इस गंगा में हाथ धो लेंगे। चूँकि यह साथ तात्कालिक लाभ से प्रेरित है, जैसा कि राजनीति में होता है, तो इसका कोई स्थाई परिणाम अभी से नहीं सोचा जा सकता।
आने वाले दिनों में किसी एक चुनाव का परिणाम अगर कांग्रेस के विपरीत आ जाता है तो ये सभी दल फिर से अपने पुराने राग अलापने लगेंगे। कांग्रेस का साथ छोड़ने में ये फिर पल भर का भी समय नहीं लगाएँगे। जहां तक भाजपा का सवाल है, उसे इस सब से बहुत ज़्यादा फ़र्क़ तुरंत तो नहीं ही पड़ने वाला है क्योंकि विपक्ष, ख़ासकर कांग्रेस के पास राहुल गांधी के अलावा और कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जो आम जनता से उसे सीधे तौर पर जोड़ता हो।
महंगाई या पेट्रोल के दाम या गैस सिलेंडर की क़ीमत अब कोई चुनावी मुद्दा नहीं बनता। लोगों को कोई ख़ास फ़र्क़ भी नहीं पड़ता। अब तो हालत यह है कि रोज़ पेट्रोल या डीज़ल भराने वालों को भी इनका सही भाव पता नहीं होता। कारण साफ़ है- जेब से निकालकर कोई क़ीमत अदा करे तो भाव पता चले। सब के सब अब तो कार्ड से पेमेंट करते हैं या फ़ोन पे, गूगल पे से।
बेरोज़गारी भी अब तो ज्वलंत मुद्दा नहीं रहा। एक अडाणी के नाम से आप कब तक चिल्लाते रहेंगे। थोड़े दिन में लोग यह नाम भी भूल जाएँगे। कुल मिलाकर सारा मामला इस बात पर निर्भर है कि कांग्रेस इस विरोध को इन प्रदर्शनों को, किस हद तक और किस रूप में आगे ले जा पाती है।
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