मानहानि के एक मामले में सूरत की कोर्ट ने राहुल गांधी को दो साल की सजा सुना दी। हालाँकि, तुरंत ही उन्हें महीने भर के लिए ज़मानत दे दी गई। लेकिन इस सजा से उनकी लोकसभा की सदस्यता ख़तरे में पड़ गई है। इसलिए, कि रिप्रेजेंटेशन ऑफ़ द पीपुल्स एक्ट 1951 की धारा 8 (3) के अनुसार अगर किसी सांसद या विधायक को किसी अपराध में दोषी ठहराया जाता है और उसे दो साल या इससे ज़्यादा समय के लिए सजा सुनाई जाती है तो उसकी संसद या विधानसभा की सदस्यता ख़त्म हो जाती है।
सजा पूरी होने के बाद भी वह अगले छह साल तक चुनाव लड़ने के योग्य नहीं माना जाता। यानी सजा शुरू होने के बाद आठ साल तक चुनाव नहीं लड़ पाता, लेकिन इसी एक्ट की धारा 8 (4) कहती है कि सदस्यता तुरंत ख़त्म नहीं होती। दोषी नेता अपील में जा सकता है। अपील में न जाने पर सजा सुनाए जाने के तीन महीने बाद सदस्यता ख़त्म हो जाती है।
अपील कोर्ट भी सजा पर स्टे कर दे तब भी सदस्यता समाप्ति के नियम पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। फ़र्क़ तभी पड़ता है जब अपील कोर्ट इस केस में दोष सिद्धि को ही ग़लत ठहरा दे या इस पर स्टे दे दे। हालाँकि, राहुल गांधी पहले नेता नहीं हैं जो ऐसे किसी मामले में इस तरह फँसे हैं। इसके पहले लालू यादव चारा घोटाले में सजा पाने के बाद सदस्यता गँवा चुके हैं।
MBBS सीट घोटाले में चार साल की सजा पाने के बाद कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य काजी रशीद अपनी सदस्यता गँवा चुके हैं। हमीरपुर के विधायक अशोक कुमार सिंह चंदेल, कुलदीप सेंगर और अब्दुल्ला आज़म को भी इसी एक्ट के तहत अपनी सदस्यता से हाथ धोना पड़ा है। वैसे राहुल गांधी पर यह इकलौता मामला नहीं है। उनके ख़िलाफ़ मानहानि के चार और मुकदमे चल रहे हैं जिनका फ़ैसला आना बाक़ी है।
पहला मामला 2014 का है जब उन्होंने संघ पर महात्मा गांधी की हत्या का आरोप लगाया था। दूसरा मामला 2016 का है जो असम के वैष्णव मठ से संबंधित है। तीसरा मामला उनके ख़िलाफ़ झारखंड में चल रहा है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ टिप्पणी को लेकर है। चौथा मानहानि का केस महाराष्ट्र में चल रहा है जिसमें राहुल पर आरोप है कि उन्होंने गौरी लंकेश की हत्या को भाजपा और संघ की विचारधारा से जोड़ा था।
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