राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने के साथ पूर्ण हो गई। यात्रा पूर्ण होने पर उन्होंने कहा- धारा 370 पर हमारी पार्टी का स्टैण्ड क्लियर है। हमारी मंशा सिर्फ़ कश्मीर में लोकतंत्र बहाल रखने की है। राहुल ने भाजपा और केंद्र सरकार को कश्मीर में चल रही अराजकता पर भी घेरा। उनका इशारा कश्मीर में चल रही टारगेट किलिंग की तरफ़ था।
राहुल ने सबसे अहम बात यह कही कि आरएसएस और भाजपा विपक्ष के खिलाफ दुष्प्रचार करते रहते हैं। मैं दावे से कहता हूँ कि पूरा विपक्ष एकजुट है। अब राहुलजी को कौन बताए कि विपक्ष में हर पार्टी का नेता प्रधानमंत्री बनने को लालायित हैं। ऐसे में एकजुटता कैसे आ सकती है। सही है, भाजपा और संघ विपक्ष के बिखराव को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं लेकिन इसमें ग़लत क्या है?
राजनीति में एक-दूसरे को खुद से कमजोर बताना आम बात है। चूँकि वे राजनीति में हैं, इसलिए राजनीति कर रहे हैं। आपको किसने रोका है? खूब राजनीति कीजिए। चौबीसों घंटे राजनीति कीजिए। यही तो आपका प्रोफ़ेशन है। गुजरात में जब चुनाव चल रहे होते हैं, आप तो वहाँ एक-एक दिन के लिए दो बार जाते हैं और अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं।
हश्र आप जानते ही होंगे। चुनावों से कांग्रेस पार्टी इस तरह भागती रही तो जीत कैसे मिलेगी? जहां तक विपक्षी पार्टियों का सवाल है वह भी आपका साथ नहीं देंगी, अगर जीत आपका साथ नहीं देती है। दुनिया विजेता के साथ ही खड़ी रहती है, हारने और लगातार हारते रहने वाले का साथ कौन देता है भला? भाजपा को हराना है तो सही मायने में विपक्ष को एकजुट करना होगा जो कि अभी तो नहीं ही है।
तमाम विपक्षी पार्टियाँ अच्छी तरह से जानती हैं कि उनकी एकता में ही ताक़त है, लेकिन फिर भी वे एकजुट नहीं हो पातीं। दरअसल, सभी क्षेत्रीय पार्टियों के अपने अहम होते हैं। ये पार्टियाँ अपने इस अहम से समझौता नहीं कर सकतीं। ऐसा किया तो वे वह भी नहीं रह पाएँगी, जो वे अभी हैं।
दरअसल, क्षेत्रीय पार्टियाँ सबसे पहले अपने क्षेत्र की फ़िक्र करती हैं। इन क्षेत्रों में कभी उनकी लड़ाई कांग्रेस से होती है। कभी वे भाजपा से लड़ रही होती हैं और कहीं -कहीं कांग्रेस, भाजपा दोनों से उन्हें लड़ना पड़ रहा होता है। यही वजह है कि क्षेत्रीय पार्टियों के नेता किसी एक जगह, एक मंच पर, एक बैनर तले लामबंद नहीं हो पाते।
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