समुद्र में तूफ़ान उठता है तो लहरें उसकी खबर देती हैं लेकिन मन में उठे तूफ़ान की बाहर से किसी को खबर नहीं होती। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जब पर्यवेक्षकों के सामने अपना डंका पिटवा रहे थे तो सचिन पायलट के मन में बड़ा तूफ़ान उठा था, लेकिन उन्होंने उस पूरे घटनाक्रम के दौरान एक शब्द नहीं बोला। यह उनकी समझदारी थी। बुधवार को गहलोत की तुलना ग़ुलाम नबी आज़ाद से करके पायलट ने अपनी उस समझदारी को मन में उठे तूफ़ान में बहा दिया है। सही है, ठहरे हुए पानी में पत्थर मारकर उसमें हलचल पैदा करना ही राजनीति है लेकिन पत्थर कब मारा जाए, यह अनुभव सिखाता है।
सचिन पायलट ने अपने ताज़ा बयान से उस अनुभव को तिलांजलि दे दी है। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को सभा मंच से गहलोत की खूब तारीफ़ की थी। कहा था- गहलोत राजनीति में हम सबसे वरिष्ठ और अनुभवी हैं। गहलोत ने भी मोदी की तारीफ़ की थी। कहा था- महात्मा गांधी के कारण आपका दुनियाभर में सम्मान है।
राजनीति में आजकल इस तरह का सौहार्द कम ही मिलता है। ऐसे सौहार्द को और ऐसे वातावरण को निश्चित रूप से बढ़ावा मिलना चाहिए। कम से कम राजनीति के लिए इस समय यह सबसे ज़रूरी है। लेकिन पायलट साहब को यह पसंद नहीं है।
उन्होंने कहा- जिस तरह गहलोत की मोदी ने प्रशंसा की, उसी तरह उन्होंने संसद में एक बार ग़ुलाम नबी आज़ाद की भी प्रशंसा की थी, क्या हस्र हुआ, सबके सामने है। यही नहीं पायलट ने शांति धारीवाल सहित उन तीन नेताओं पर कार्रवाई की माँग भी कर डाली, जिन्हें राजस्थान कांग्रेस विधायक दल की कथित समानांतर बैठक के बाद नोटिस दिए गए थे।
राजनीति का तक़ाज़ा है कि समय देखकर ही बोलना चाहिए। आगे का समय निश्चित तौर पर पायलट का ही था। है भी। लेकिन उनकी बयानबाज़ी लगता है ऐसा होने नहीं देगी। गहलोत जो अब तक सचिन के खिलाफ बयानबाज़ी करते रहते थे, उन्होंने इस पर बड़ी नपी- तुली प्रतिक्रिया दी।
उन्होंने सिर्फ़ इतना कहा कि उन्हें ऐसा बयान नहीं देना चाहिए। गंभीरता इसे कहते हैं। राजनीति में यह बड़े अनुभव से आती है। वैसे भी चुनाव के मात्र बारह- तेरह महीने बचे हैं। ऐसे में सचिन पायलट इस तरह की बयानबाज़ी करके कौन सा कीर्तिमान गढ़ने वाले हैं? जिस तरह राजस्थान भाजपा में अगले मुख्यमंत्री पद के इस वक्त कई संभावित दावेदार घूम रहे हैं, उसे देखते हुए अगर कांग्रेस खुद में एका क़ायम रखे तो वह इतिहास बदल सकती है।
सत्ता में दोबारा आ सकती है। गहलोत और पायलट दोनों गुटों का ध्यान इस पर होना चाहिए, न कि एक- दूसरे पर आरोप- प्रत्यारोप करने में। बहरहाल, सचिन पायलट के बयान के बाद राजस्थान कांग्रेस में फिर बयानबाज़ी तेज होगी और इसका नुक़सान आख़िरकार कांग्रेस को ही होगा, ऐसी आशंका है।
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