कॉलेजियम सिस्टम को लेकर जारी बयानबाजी के बीच सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसके खिलाफ टिप्पणी ठीक नहीं है। यह देश का कानून है और हर किसी को इसका पालन करना चाहिए। कोर्ट देश की अदालतों में जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की ओर से सरकार को भेजे गए नामों से जुड़ी याचिका पर सुनवाई कर रहा था। जिसमें कहा गया था कि केंद्र सरकार भेजे गए जजों के नामों को मंजूरी देने में देर कर रही है।
कोर्ट ने पूछा कि सरकार और कॉलेजियम सिस्टम के बीच विवाद कब सुलझेगा? जब तक कॉलेजियम सिस्टम है, जब तक इसे बरकरार रखा जाता है, तब तक इसके हिसाब से ही काम करना होगा। अगर आप नया कानून लाना चाहते हैं तो कोई नहीं रोकता। अगर समाज का एक वर्ग यह तय करने लगे की किस कानून का पालन होगा और किसका नहीं तो मुसीबत हो जाएगी। जब सरकार कानून बनाती है तो आप उम्मीद करती है कि अदालतें इसे तब तक लागू करेंगी जब तक कानून रद्द नहीं हो जाता।
कोर्ट ने सरकार को दी सलाह
जस्टिस एस के कौल की अध्यक्षता वाली बेंच मामले की सुनवाई कर रही है। इसमें जस्टिस ए एस ओका और विक्रम नाथ भी शामिल हैं। बेंच ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से सरकार को इस बारे में सलाह देने को कहा। उन्होंने कहा कि उम्मीद करते हैं आप सरकार को समझाएंगे कि कोर्ट की ओर से निर्धारित कानूनी सिद्धातों का पालन किया जाए।
इससे पहले 2 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कॉलेजियम सिस्टम को ऐसे लोगों के बयानों के आधार पर बेपटरी नहीं किया जा सकता, जिनकी दूसरों के कामकाज में दिलचस्पी हो।
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में होते हैं 5 सदस्य
कॉलेजियम में 5 सदस्य होते हैं। CJI इसमें प्रमुख होते हैं। इसके अलावा 4 मोस्ट सीनियर जज होते हैं। इसके सदस्यों में CJI यूयू ललित, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस एस.के. कौल, जस्टिस एस. अब्दुल नजीर और जस्टिस के.एम जोसेफ शामिल हैं। कॉलेजियम ही सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति और उनके नाम की सिफारिश केंद्र से करता है।
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