प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बारे में बीबीसी की एक डाक्यूमेंट्री है जो देश में प्रतिबंधित है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ( जेएनयू) देश का एकमात्र ऐसा संस्थान है जहां ज़्यादातर प्रतिबंधित काम धड़ल्ले से होते रहते हैं। चाहे पाकिस्तान समर्थित नारेबाज़ी हो, चाहे भारत विरोधी नारे हों, सब यहीं लगाए जाते हैं। केंद्र सरकार इस जेएनयू का कुछ कर भी नहीं पाती।
हम और हमारी सरकार के पास लकीर पीटने के सिवाय कोई काम नहीं है। आख़िर ये जेएनयू कोई अमेरिका का वाइट हाउस तो है नहीं। फिर छोटी - मोटी घटनाओं की तरह चंद गिरफ़्तारियों से आगे बात बढ़ क्यों नहीं पाती?
दरअसल, बात गुजरात दंगों से संबंधित है। कहा जाता है कि बीबीसी की इस डाक्यूमेंट्री में प्रधानमंत्री (तत्कालीन मुख्यमंत्री, गुजरात) नरेंद्र मोदी पर कुछ आक्षेप लगाए गए हैं, जबकि एसआईटी इस मामले में मोदी को क्लीन चिट दे चुकी है। देश का सुप्रीम कोर्ट उन्हें बाइज़्ज़त बरी कर चुका है। फिर जेएनयू और जामिया मिलिया में इस डाक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग का क्या मतलब? जबकि यह डाक्यूमेंट्री देश में पूरी तरह प्रतिबंधित है।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस नेताओं को इस डाक्यूमेट्री को दिखाए जाने में कोई आपत्ति नहीं दिखाई देती। बल्कि वे तो इस डाक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध को ही सवालों के कटघरे में रख रहे हैं। शशि थरूर का कहना है कि इस डाक्यूमेंट्री को दिखाए जाने से कौन सी देश की संप्रभुता ख़तरे में पड़ने वाली है जो केंद्र सरकार इस पर प्रतिबंध लगा रही है। दूसरी तरफ़ राहुल गांधी कह रहे हैं कि सचाई एक न एक दिन सामने आ ही जाती है। डाक्यूमेंट्री के ज़रिए भी आए तो इसमें बुराई क्या है? उल्लेखनीय है कि जेएनयू से पहले हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में भी छात्रों को एक समूह के बीच इस डाक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की गई थी।
उधर ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने कहा है कि इस डाक्यूमेंट्री में जिस तरह मोदी को प्रस्तुत किया गया है, वे इससे क़तई सहमत नहीं हैं। जब अन्य देश के राजनेता इस डाक्यूमेंट्री को समर्थन नहीं दे रहे हैं तो भारतीय नेताओं को इसके समर्थन से आख़िर क्या मिल रहा है? क्या कांग्रेस की सरकार होती और उसके द्वारा प्रतिबंधित की गई किसी ऐसी ही डाक्यूमेंट्री या फ़िल्म को देश में दिखाया जाता, तब भी उनके सवाल यही होते?
यहाँ तक कि अमेरिकी विदेश मंत्रालय नें भी इस डाक्यूमेंट्री पर किसी तरह का बयान देने से इनकार कर दिया है। उल्लेखनीय है कि इस डाक्यूमेंट्री का पहला एपीसोड 17 जनवरी को बीबीसी ने प्रसारित किया था। दूसरा एपीसोड 24 जनवरी को आने वाला था। इसके पहले ही इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
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