उत्तराखंड के जोशीमठ में कई घरों और इमारतों में भूस्खलन के चलते बड़ी दरारें आ गई हैं। सरकार ने उन्हें गिराने का फैसला लिया है। पहाड़ी राज्यों में ऐसा होना आम माना जाता है। लेकिन इसी पहाड़ी राज्य में ऐसे भी गांव भी हैं, जहां का आर्किटेक्चर न केवल पूरे भारत मे बिल्कुल नायाब है बल्कि पर्यावरण के लिहाज से सबसे सुरक्षित माना जाता है। इस आर्किटेक्चर को ‘कोटी बनाल’ कहते हैं।
पूरी तरह देवदार की लकड़ी से बने इन घरों को सिर्फ आग से खतरा रहता है। वैज्ञानिक भी इन्हें भूकंप के लिहाज से सबसे सुरक्षित मानते हैं। इन गांवों में सिगरेट-बीड़ी पीना प्रतिबंधित है। सभी घर लकड़ी से बने होते हैं, इनमें आग आसानी से लग जाती है। सुरक्षा के बहाने ही सही, ये गांव धूम्रपान से पूरी तरह दूर हैं।
हजारों साल पुराना है यह अर्किटेक्चर, चार मंजिला इमारतें भी लकड़ी से बनती हैं
उत्तराखंड के सीमांत उत्तरकाशी जनपद के रवाईं क्षेत्र के गंगाड़ और ओसला जैसे पांच गांवों में इस तरह के घर दिखते हैं। तीन से चार मंजिला घर भी देवदार की लकड़ी से बनाए जाते हैं। ये आर्किटेक्चर हजारों साल पुराना है। यहां के घरों सबसे नीचे का तल गाय भैंसों के लिए होता है, सबसे ऊपर के तल में बकरियों रखा जाता है। वहीं, मध्यम तल में परिवार रहता है। इसके ऊपर आनाज का भंडारण होता है।
1991 के भूकंप में भी इन घरों को नहीं पहुंचा नुकसान
यहां बने घर आर्किटेक्चरल आर्ट और साइंस के अनूठे उदाहरण हैं। उत्तराखंड में 1991 मे आए विनाशकारी भूकंप ने भारी तबाही मचाई, पर इन घरों को जरा भी नुकसान नहीं हुआ। राजगढ़ी, मोरी बड़कोट, पुरोला और टकनोर क्षेत्रों में इसी तरह के मकान बनाए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि देवदार की लकड़ी लगभग 900 साल तक जलवायु में बदलाव को सहन कर सकती है। इसलिए ये घर भूकंपरोधी होने के साथ जलवायु से भी सुरक्षित रहते हैं।
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