आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती है। इसी बहाने उनकी आजाद हिंद फौज के सिपाही रहे खितिज चंद्र रॉय के परिवार की कहानी पढ़िए। खितिज चंद्र दास हुगली के श्रीरामपुर में रहते थे। अंग्रेजों से सीधा मुकाबले करने वाले और ढाका की बदनाम जेल में 18 महीने जुल्म बर्दाश्त करने वाले खितिज चंद्र का परिवार आज गरीबी से लड़ रहा है। एक कच्चा मकान उनका ठिकाना है।
आजादी के लिए रॉय अपनी मां को छोड़कर लड़ाई पर निकल गए थे। अब उनके परिवार को देखने वाला कोई नहीं है। न कोई नेता, न मंत्री, न विधायक और न सांसद। दो कमरे के बांस और टाली के मकान में रह रहा यह परिवार राज्य सरकार से मिल रही 3,000 रुपए महीने की पेंशन से गुजर-बसर कर रहा है। परिवार में खितिज चंद्र रॉय की पत्नी और दो बेटे हैं। उन्होंने मदद के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को भी खत लिखा, लेकिन हालात नहीं बदले।
नेताजी के साथ जेल में बिताए थे 18 महीने
खितिज चंद्र रॉय अपने वक्त में कई क्रांतिकारियों के करीबी थी। साल 1978 में अंग्रेजी सरकार को सीधी चुनौती देने वाले चटगांव शस्त्रागार लूट कांड के नायक गणेश घोष का उनके घर आना-जाना था। देश की राजनीति में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाले जयप्रकाश नारायण, सुभाष चंद्र बोस, शरत चंद्र बोस और अमियो बोस उनके साथी थे।
खितिज चंद्र नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ 18 महीने ढाका के चट्टग्राम जेल में कैद रहे। यह साल 1942 की बात है। 18 महीने बाद वे अंग्रेजी सैनिकों की आंखों में धूल झोंककर जेल से फरार हो गए थे। 1946 में उन्हें कोलकाता से दोबारा गिरफ्तार कर अलीपुर सेंट्रल जेल में डाल दिया गया।
परिवार को अब भी मदद की आस
खितिज चंद्र रॉय का परिवार श्रीरामपुर की महेश कॉलोनी में दो कमरे के घर में रहता है। आमदनी के नाम पर सरकारी पेंशन है। यह पेंशन पश्चिम बंगाल सरकार देती है। हर महीने 3 हजार रुपए। इतने में गुजारा हो पाना नामुमकिन ही है। उनकी पत्नी झरना रॉय कहती हैं कि बेटे अभिजीत और अपूर्व केंद्र सरकार से कई बार मदद की गुजारिश कर चुके हैं। गृहमंत्री अमित शाह को कई बार खत लिखा। इसके बावजूद किसी तरह की मदद नहीं मिली। कोई नेता, मंत्री, सांसद या विधायक मिलने तक नहीं आया।
अभिजीत रॉय बताते हैं कि उनके पिता खितिज चंद्र रॉय का जन्म 1920 में हुआ था। कम उम्र में ही उन्होंने खुद को देश को समर्पित कर दिया। आजादी की लड़ाई के लिए वे नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाली आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए।
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