प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होना भी अपराध:सुप्रीम कोर्ट ने UAPA कानून पर पलटा 2011 का फैसला; कहा- सरकार को सुने बिना दिया फैसला गलत

नई दिल्ली3 महीने पहले
  • कॉपी लिंक

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) कानून के तहत प्रतिबंधित संगठनों की सदस्यता पर अपने ही 12 साल पुराने फैसले को गलत करार दिया। कोर्ट केंद्र और असम सरकार की रिव्यू पिटीशन पर फैसला सुना रहा था। जस्टिस एमआर शाह, सीटी रविकुमार और संजय करोल की बेंच ने 2011 में दिए फैसले को खारिज कर दिया।

बेंच ने कहा कि यदि कोई प्रतिबंधित संगठन का सदस्य है तो उसे अपराधी मानते हुए UAPA (अनलॉफुल एट्रॉसिटीज प्रिवेंशन एक्ट) के तहत कार्रवाई की जा सकती है। यानी उसके खिलाफ भी मुकदमा चलेगा। कोर्ट ने 8 फरवरी को रिव्यू पिटीशन पर सुनवाई शुरू की थी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, सीनियर एडवोकेट संजय पारिख को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।

पहले जानिए क्या था UAPA के तहत 2011 में दिया फैसला
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस मार्कंडेय काटजू और जस्टिस ज्ञान सुधा की बेंच ने 2011 में अरूप भुइयां v/s असम सरकार, इंद्र दास बनाम असम सरकार और केरल सरकार बनाम रानीफ केस का फैसला सुनाया था।

बेंच ने कहा था कि केवल प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होने से कुछ नहीं होगा। एक व्यक्ति तब तक अपराधी नहीं जब तक कि वह हिंसा का सहारा नहीं लेता है या लोगों को हिंसा के लिए उकसाता नहीं है, या हिंसा के लिए उकसाकर सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा करने की कोशिश करता है।

जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस एएम सप्रे की बेंच ने 2014 में इस मामले को बड़ी बेंच के पास भेज दिया था। तब केंद्र सरकार ने अपील दायर करते हुए कहा था कि सरकार का पक्ष सुने बिना केंद्रीय कानूनों की व्याख्या की गई।

तीनों केस में आरोपी बरी कर दिए गए थे
उल्फा का सदस्य होने के आरोपी अरूप भुईयां ने टाडा के तहत दायर जमानत अर्जी पर फैसला दिया था। 3 फरवरी 2011 को SC ने अरूप भुइयां को बरी कर दिया था। जिसे टाडा अदालत ने उसके इकबालिया बयान के आधार पर दोषी ठहराया था। इससे पहले केरल सरकार v/s रानीफ (2011) केस में UAPA के तहत जमानत अर्जी पर फैसला करते हुए उसी बेंच ने यही विचार रखा था। इन्द्र दास के मामले में भी इसी बेंच ने यही विचार रखे थे।

सुप्रीम कोर्ट से जुड़ी ये खबरें भी पढ़ें...

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा-अदालतें पितृसत्तात्मक टिप्पणी से बचें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने मंगलवार को मौत की सजा के फैसले पर रिव्यू के दौरान अहम टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट की समीक्षा की पंक्तियों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अदालतों को पुरुष प्रधान या पितृ सत्तात्मक टिप्पणियों से बचना चाहिए। पढ़ें पूरी खबर...
  • सुप्रीम कोर्ट ने 20 साल बाद हत्या के दोषी को बरी किया 20 साल पुराने हत्या के मामले में दोषी को SC ने बरी कर दिया। कोर्ट का कहना था कि गवाह का बनावटी रूप उसके बयान की विश्वसनीयता पर संदेह करने का आधार हो सकता है। चश्मदीद का ये कहना कि दोस्त का मर्डर देखने के बाद वह डर के मारे घर जाकर सो गया, भरोसा करने लायक नहीं है। पढ़ें पूरी खबर...
  • सुप्रीम कोर्ट नहीं सुनेगा नोटबंदी के अलग मामले सुप्रीम कोर्ट ने 2016 की नोटबंदी में बंद किए गए 500-1000 के नोटों को एक्सेप्ट करने के अलग-अलग मामलों पर विचार करने से इनकार कर दिया। साथ ही कहा कि इसके लिए याचिकाकर्ता केंद्र सरकार के पास जाएं। कोर्ट ने सरकार को भी 12 हफ्ते के अंदर 500-1000 के नोटों के आदान-प्रदान पर जिम्मेदारी तय करने का निर्देश दिया। पढ़ें पूरी खबर...
खबरें और भी हैं...