देश फाइनेंशियल एजुकेशन की तरफ़ अग्रसर हो रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक़ देश में जितने भी लोग निवेश करने वाले हैं उनमें एफ़डी यानी फ़िक्स डिपॉजिट करने वालों से ज़्यादा संख्या म्यूचुअल फंड में निवेश करने वालों की है। जबकि म्यूचुअल फंड में निवेश में रिस्क होता है। इसका मतलब है कि लोगों में फाइनेंशियल जागरूकता आ रही है और वे समझदारी के साथ रिस्क ले रहे हैं। लोग एफ़डी से ज़्यादा ब्याज कमाने के प्रति लालायित हैं।
रिपोर्ट कहती है कि कुल निवेशकों में से म्यूचुअल फंड या एसआईपी चला रहे लोगों का प्रतिशत 57 है, जबकि एफ़डी करने वाले 54 प्रतिशत ही है। हो सकता है एफ़डी करने वाले और एसआईपी चलाने वाले लोगों में रिपीटेशन भी हो लेकिन यह आँकड़ा फाइनेंशियल जागरूकता के लिए बहुत उत्साहित करने वाला है। सबसे बड़ी बात तो ये है कि सर्वे रिपोर्ट के अनुसार एसआईपी चलाने वाली महिलाओं की संख्या पुरुषों से ज़्यादा है।
यानी एसआईपी चलाने वालों में महिलाएँ 60% और पुरुष 55% ही हैं। आर्थिक आज़ादी का यह अच्छा और शुभ संकेत है।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को देश में कई लोग मौन मोहन सिंह कहने लगे थे। लेकिन वित्त मंत्री के रूप में उनका जो काम था उसकी प्रशंसा किए बिना कोई भी रह नहीं सकता। देश 1947 में आज़ाद हुआ लेकिन देश के लोगों को आर्थिक आज़ादी तभी मिली जब 1991 में प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव ने मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाया। इसके पहले के हालात आज के युवाओं को भले ही पता न हों, लेकिन चालीस- पचास की उम्र के पार वाले तमाम लोग अच्छी तरह जानते हैं।
हालात ये थे कि लोग बैंक का मुँह देखना पसंद नहीं करते थे। भ्रांति ये थी कि कुछ भी कर लेना लेकिन बैंक से लोन मत लेना। कहा जाता था कि बैंकें ब्याज पर ब्याज लेती हैं। जिसे चक्रवृद्धि ब्याज कहा जाता है। बुजुर्ग लोग जिस तरह कहते थे कि भगवान थाने का मुँह न दिखाए, वैसे ही बैंक के बारे में भी कहा जाता था। जिस पर बैंक का लोन होता था, उसे समाज में ठीक नहीं समझा जाता था। आर्थिक उदारता का जादू लाए मनमोहन सिंह।
मुद्रा की तरलता को बढ़ाने और पैसे की आसान उपलब्धि का श्रेय केवल मनमोहन सिंह को जाता है। एक जमाना था जब लोन मंज़ूर करने के लिए बैंक मैनेजर रिश्वत लिया करते थे। कम से कम पाँच या दस परसेंट तो देना ही होता था। इसके बिना कुछ भी संभव नहीं था। आज हालात ऐसे हैं कि लोन के लिए केवल एक फ़ोन घुमाइए शाम तक बैंक एग्जीक्यूटिव आपके घर या ऑफिस आकर सारी फॉर्मेलिटीज पूरी कर लेते हैं और एक या दो दिन में लोन मिल भी जाता है।
वैसे तो लोन देने के लिए अलग- अलग बैंकों के निवेदन फ़ोन पर आते रहते हैं। कहते हैं कोई काग़ज़- पत्री नहीं करनी है। आप तो बस लोन ले लीजिए। जबकि अब तो लोन की ब्याज दर भी तब से लगभग आधी हो चुकी है। बल्कि आधे से भी कम।
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