• Hindi News
  • National
  • Rajasthan Gurjar Aandolan; Sachin Pilot, Ashok Gehlot Rahul Gandhi Bharat Jodo Yatra

भास्कर ओपिनियनराजस्थान में नया विवाद:वर्षों से सोए हुए गुर्जर आंदोलन को झाड़-फूंक कर फिर से जगाने की कोशिश

4 महीने पहले
  • कॉपी लिंक

राजस्थान में कांग्रेस के विवाद की राख में अभी कई चिनगारियाँ बाक़ी ही हैं और एक नया विवाद खड़ा हो रहा है। ओझा लोग वर्षों से सोए हुए गुर्जर आंदोलन को झाड़- फूंक कर फिर से जगाने में जुट गए हैं।

रोड़े दोनों तरफ़ हैं। समझौते के बावजूद सरकार गुर्जरों की माँग पूरी नहीं करती और गुर्जर हैं कि कुछ भी कम पर मानना नहीं चाहते। कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला तो अब नहीं रहे, उनके बेटे विजय बैंसला ने कमान सँभाली है। उनका कहना है कि कर्नल साहब से हुए समझौते को हम हर हाल में लागू करवाना चाहते हैं।

बीस दिन में सरकार ने सभी माँगें नहीं मानीं तो राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को राजस्थान में घुसने नहीं देंगे। अब विजय बैंसला जिन कर्नल साहब के समझौते को लागू कराने की ज़िद पर अड़े हैं, उन्हें यह याद नहीं है कि कर्नल साहब ने महीनों पटरियों पर आंदोलन किया, लेकिन ऐसा मौक़ा देखकर आंदोलन की धमकी नहीं दी जैसी वे दे रहे हैं … कि राहुल गांधी को राज्य में घुसने नहीं देंगे।

नाप तौल कर समय भी बीस दिन का दिया जब राहुल राज्य में प्रवेश करने वाले हैं। आगे चुनाव आने वाले हैं। और भी कई मौक़े हो सकते थे, लेकिन यही मौक़ा क्यों चुना गया? पहले ऐसा नहीं था, लेकिन इस बार यह आंदोलन अब सीधे राजनीति से जोड़कर भी देखा जाने लगा है। हो सकता है राजनीति से कोई वास्ता न भी हो, लेकिन चूँकि गहलोत-पायलट विवाद चल ही रहा है और पायलट गुर्जर समाज के ही नेता हैं, इसलिए इसे उनसे भी जोड़ा जाएगा। हालाँकि राजनीतिक क्षेत्रों में अलग-अलग चर्चाएँ हैं।

कोई कह रहा है कि राहुल गांधी की यात्रा के एन वक्त पर पायलट को बदनाम करने के लिए गहलोत ख़ेमे के ही कुछ लोग इस आंदोलन को हवा दे रहे हैं। कोई कह रहा है कि पायलट ही ऐसा करवा रहे हैं। जहां तक विजय बैंसला का सवाल है वे तो सभी गुर्जर विधायकों को थाली का बैंगन बता रहे हैं। उनका कहना है ये सब बैंगन की तरह जिधर सहूलियत हो उधर लुढ़कते रहते हैं।

उन्होंने तो यह भी कहा कि पायलट तो खुद उप मुख्यमंत्री थे! उन्होंने कौन-सा हमारा समझौता लागू करवा दिया जो हम उनकी बात मानें! बैंसला ने एक और बात कही, हमारा काम किसी की यात्रा रोकना थोड़े ही है। हमारा काम कर दो और छुट्टी पाओ। समझौता जब किया है तो उसे लागू करने में दिक़्क़त क्या है?

कौन सच है और कौन झूठ, यह तो कहना फ़िलहाल मुश्किल है, लेकिन इस सब से राहुल गांधी की यात्रा पर संशय के बादल मंडराने शुरू हो गए हैं। सुझाव दिए जा रहे हैं कि यात्रा का रूट बदल देना चाहिए। अभी जो रूट तय है वह अधिकांश गुर्जर बेल्ट में आता है इसलिए इसमें तो परेशानी आनी निश्चित ही है, लेकिन जो भी रूट तय होगा, वहाँ गुर्जर तो धमक ही सकते हैं। देखना यह है कि सरकार समझौता लागू करती है, गुर्जरों को थोड़ा कुछ देकर मनाती है या राहुल गांधी की यात्रा में अड़चन आने का जोखिम उठाती है!