चीन के खिलाफ व्यापार के मामले में हम कच्चे साबित हो रहे हैं। चीनी कस्टम विभाग ने ताज़ा आँकड़े जारी किए हैं। इनके अनुसार हम जो सामान चीन से आयात करते हैं, यानी चीन से जो कुछ हम ख़रीदते हैं, उसमें 21.7 प्रतिशत वृद्धि हुई है और उसका आँकड़ा तो 118.5 अरब डालर सालाना पर पहुँच गया है, जबकि चीन जो हमसे सामान की ख़रीद करता है उसमें 37.9 प्रतिशत की गिरावट आई है और उसका आँकड़ा गिरकर मात्र 17.48 अरब डालर सालाना रह गया है।
चीनी सामान का आयात हम कम करने वाले थे। उस पर निर्भरता हम घटाने वाले थे, लेकिन हो गया उल्टा। उसने हमारा सामान आयात करना काफ़ी कम कर दिया और हम पहले से भी ज़्यादा चीनी सामान मंगाने लगे। तस्वीर साफ़ है। हम चीनी सामानों का अपना मोह छोड़ ही नहीं पा रहे हैं।
दरअसल, यह किसी सरकार या संस्था या संगठन की गलती नहीं है। आयात सही मायनों में माँग पर निर्भर होता है। जिस सामान की माँग ज़्यादा होती है, वह बाहर से या दूसरे देश से मंगाया जाता है। चीनी सामान चूँकि सस्ता पड़ता है, इसलिए हम उसका मोह छोड़ ही नहीं पा रहे हैं।
हम सोचते हैं, दीवाली पर सस्ती चीनी झालरें न लगाकर ही हम चीन को मात दे देंगे, लेकिन ऐसा नहीं है। आख़िर कहाँ- कहाँ आप चीनी सामान को रोकेंगे?हमें यह पता ही नहीं चलता कि जो हम इस्तेमाल कर रहे हैं वह सामान चीनी है या स्वदेशी। स्वदेशी का नारा लगाने वाले संगठन ही चीनी सामान का उपयोग करते हुए यह नारा लगाते हैं। क्योंकि आभास ही नहीं होता कि चीनी सामान की पैठ कहाँ - कहाँ तक हो चुकी है।
हालाँकि आँकड़ों की बाज़ीगरी भी हो सकती है लेकिन इतनी ज़्यादा नहीं हो सकती। ट्रेंड तो पता चल ही जाता है। कुल मिलाकर चीन की हमारे बाज़ार पर पकड़ इतनी ज़्यादा हो चुकी है कि उसे कम करना आसान नहीं है। इसके लिए एक कठोर संकल्प की ज़रूरत है। अब सवाल यह उठता है कि यह संकल्प ले कौन?
अकेली सरकार तो यह कर नहीं सकती। उसके बस की बात भी नहीं है। जब तक भारत का बच्चा - बच्चा संकल्प न लें तब तक यह संभव नहीं लगता। यह भी धीरे- धीरे ही होगा। पैठ इतने भीतर तक है कि एकदम से या रातोरात कुछ नहीं हो सकता। सस्ते चीनी सामान से मुक्ति पानी है, सही मायने में स्वदेशी को अपनाना है तो मैन्यूफ़ैक्चरिंग यूनिट्स की बाढ़ लानी होगी।
बड़ी मात्रा में नई फैक्ट्रियां लगानी होगी, तभी हम बाज़ार की माँग को पूरा कर सकते हैं। लोग किसी चीज़ का इस्तेमाल यूँ ही बंद नहीं कर सकते। इसके लिए उन्हें विकल्प देने होंगे। बिना विकल्प के केवल हवा में बात करने से कुछ नहीं होने वाला है।
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