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क्या है LGBTQIA+:अपीयरेंस नहीं, सेक्शुअल प्रेफरेंस से होती है पहचान; आपको बताते हैं क्या है इन अक्षरों के मायने

2 वर्ष पहले
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देश को जल्द पहला गे (समलैंगिक) जज मिल सकता है। सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने सीनियर वकील सौरभ कृपाल (49) को दिल्ली हाईकोर्ट का जज बनाने की सिफारिश की है। वे LGBTQIA+ समुदाय से हैं। इस समुदाय में लोगों की पहचान उनके पहनावे या अपीयरेंस से नहीं, बल्कि उनके सेक्शुअल प्रेफरेंस से होती है। यानी वे सेक्शुअल रिलेशनशिप के लिए किस जेंडर के प्रति आकर्षित होते हैं और खुद को शरीर के अलावा मैस्कुलिन (पौरुष) मानते हैं या फैमिनाइन (स्त्रैण) तरीके से देखते हैं। हम आपको बताते हैं कि इस समुदाय में कौन-कौन आते हैं और इस प्लस (+) साइन का मतलब क्या है।

LGBTQIA+ के हर अक्षर के मायने जानें...

L - 'लेस्बियन': यानी एक महिला या लड़की का समान लिंग के प्रति आकर्षण। इसमें दोनों पार्टनर महिला ही होती हैं। कई बार किसी एक पार्टनर का लुक, पर्सनालिटी पुरुष जैसी हो सकती है या नहीं भी हो सकती है।

लेस्बियन प्राइड फ्लैग को 2010 में नैटली मैक्क्रे ने बनाया था। इस फ्लैग में पिंक और रेड के विभिन्न शेड दिखाए जाते हैं, जाो महिलाओं को रिप्रजेंट करते हैं।
लेस्बियन प्राइड फ्लैग को 2010 में नैटली मैक्क्रे ने बनाया था। इस फ्लैग में पिंक और रेड के विभिन्न शेड दिखाए जाते हैं, जाो महिलाओं को रिप्रजेंट करते हैं।

G - 'गे': जब एक पुरुष को एक और पुरुष से ही आकर्षण हो तो उन्हें ‘गे’ कहते हैं। ‘गे’ शब्द का इस्तेमाल कई बार पूरे समलैंगिक समुदाय के लिए किया जाता है, जिसमें ‘लेस्बियन’, ‘गे’, ‘बायसेक्शुअल’ सभी आ जाते हैं।

गे मेन प्राइड का नया फ्लैग। पहले यह 8 रंगों का इंद्रधनुष फ्लैग था, लेकिन बाद में इसे बदल दिया गया 6 रंगों का रेनबो फ्लैग पूरे समुदाय को रिप्रजेंट करता है।
गे मेन प्राइड का नया फ्लैग। पहले यह 8 रंगों का इंद्रधनुष फ्लैग था, लेकिन बाद में इसे बदल दिया गया 6 रंगों का रेनबो फ्लैग पूरे समुदाय को रिप्रजेंट करता है।

B - 'बायसेक्शुअल': जब किसी पुरुष या महिला को पुरुष और महिला दोनों से ही आकर्षण हो और सेक्शुअल रिलेशन भी बनाते हों तो उन्हें ‘बायसेक्शुअल’ कहते हैं। पुरुष और महिला दोनों ही ‘बायसेक्शुअल’ हो सकते हैं। दरअसल एक इंसान की शारीरिक चाहत तय करती है कि वो L है G है या फिर B है।

बायसेक्शुअल प्राइड फ्लैग को 1998 में बनाया गया। इसमें लाल और नीला रंग मिलकर वॉयलेट रंग बनाते हैं, ठीक ऐसे ही बायसेक्शुअल लोग स्ट्रेट और गे कम्युनिटी में मिक्स हो जाते हैं।
बायसेक्शुअल प्राइड फ्लैग को 1998 में बनाया गया। इसमें लाल और नीला रंग मिलकर वॉयलेट रंग बनाते हैं, ठीक ऐसे ही बायसेक्शुअल लोग स्ट्रेट और गे कम्युनिटी में मिक्स हो जाते हैं।

T- 'ट्रांसजेंडर': वह इंसान जिनका शरीर पैदा होते समय कुछ और था और वह बड़ा होकर खुद को एकदम उलट महसूस करने लगे। जैसे कि पैदा होने के वक्त बच्चे के निजी अंग पुरुषों के थे और उसका नाम लड़के वाला था मगर कुछ समय बाद उसने खुद को पाया कि वो तो मन से लड़की जैसा महसूस करता है। इस पर कुछ लोग लिंग परिवर्तन भी कराते हैं। लड़के लड़कियों वाले हार्मोंस डलवा लेते हैं जिससे स्तन उभर आते हैं। ये लोग ‘ट्रांसजेंडर’ हैं। इसी तरह औरत भी मर्द जैसा महसूस करती है तो वो मर्दों की तरह लगने के लिए चिकित्सा का सहारा लेती है। वह भी‘ट्रांसजेंडर’ है।

ट्रांसजेंडर फ्लैग को 1999 में एक ट्रांसजेंडर ने बनाया था।
ट्रांसजेंडर फ्लैग को 1999 में एक ट्रांसजेंडर ने बनाया था।

Q - 'क्वीर’: ऐसे इंसान जो न अपनी पहचान तय कर पाए हैं न ही शारीरिक चाहत। मतलब ये लोग खुद को न आदमी, औरत या ‘ट्रांसजेंडर’ मानते हैं और न ही ‘लेस्बियन’, ‘गे’ या ‘बायसेक्शुअल’, उन्हें ‘क्वीर’ कहते हैं। ‘क्वीर’ के ‘Q’ को ‘क्वेश्चनिंग’ भी समझा जाता है यानी वो जिनके मन में अपनी पहचान और शारीरिक चाहत पर अभी भी बहुत सवाल हैं।

अश्वेत लोगों को LGBTQ का हिस्सा नहीं माना जाता था। ऐसे में फिलाडेल्फिया सिटी ने समुदाय में अश्वेत क्वीर लोगों को शामिल करने के लिए 2017 में LGBT फ्लैग में डार्क रंग जोड़े।
अश्वेत लोगों को LGBTQ का हिस्सा नहीं माना जाता था। ऐसे में फिलाडेल्फिया सिटी ने समुदाय में अश्वेत क्वीर लोगों को शामिल करने के लिए 2017 में LGBT फ्लैग में डार्क रंग जोड़े।

I- 'इंटरसेक्स': इंटरसेक्स सोसायटी ऑफ नॉर्थ अमेरिका के मुताबिक, यह शब्द उन लोगों को परिभाषित करता है जो महिला या पुरुष के सामान्य प्रजनन अंगों के साथ पैदा नहीं होते हैं। वे लोग जो बाहर से तो महिला या पुरुष लगते हैं, लेकिन उनके प्रजनन अंग उस जेंडर से मेल नहीं खाते।

इंटरसेक्स प्राइड फ्लैग का यह वर्जन 2013 में मॉर्गन कारपेंटर ने बनाया। उन्होंने रेनबो वाले फॉर्मेट नहीं चुना। यह सर्किल दर्शाता है कि इंटरसेक्स लोग अपने आप में संपूर्ण हैं।
इंटरसेक्स प्राइड फ्लैग का यह वर्जन 2013 में मॉर्गन कारपेंटर ने बनाया। उन्होंने रेनबो वाले फॉर्मेट नहीं चुना। यह सर्किल दर्शाता है कि इंटरसेक्स लोग अपने आप में संपूर्ण हैं।

A- 'एसेक्शुअल' या 'एलाई': इस अक्षर के दो मायने हो सकते हैं। पहला है एसेक्शुअल- यह शब्द उन लोगों के लिए जो इस्तेमाल होता है जो किसी जेंडर के प्रति सेक्शुअल अट्रैक्शन महसूस नहीं करते। ये लोग किसी के साथ रोमांटिक रिलेशनशिप में तो आ सकते हैं, लेकिन सेक्शुअल रिलेशंस नहीं बना पाते। ऐसा किसी मनोरोग या डर के कारण नहीं होता है, बस इन्हें सेक्शुअल फीलिंग नहीं आती।

एसेक्शुअल कम्युनिटी के इस फ्लैग को 2010 में बनाया गया। इसके अलग-अलग रंग दर्शाते हैं कि इस समुदाय के लोग सेक्शुएलिटी को कैसे देखते हैं।
एसेक्शुअल कम्युनिटी के इस फ्लैग को 2010 में बनाया गया। इसके अलग-अलग रंग दर्शाते हैं कि इस समुदाय के लोग सेक्शुएलिटी को कैसे देखते हैं।

दूसरा शब्द है एलाई- यह शब्द ऐसे लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो LGBTQI लोगों के साथी या दोस्त के तौर उनके अधिकारों के लिए आवाज उठाता है, भले ही वह खुद इस समुदाय से संबंधित न हो।

प्लस (+): इसके अलावा LGBTQIA के आगे प्लस (+) का निशान भी लगाया जाने लगा है। इसमें पैनसेक्शुअल, पॉलीएमॉरस, डेमीसेक्शुअल सहित कई अन्य समूह रखे जाते हैं। इससे और भी समूहों के लिए खुला रखा गया है, जिनकी अभी तक पहचान भी नहीं हो पाई है।

LGBTQIA+ समुदाय में लगातार नए वर्ग जुड़ रहे हैं। ऐसे में यह फ्लैग समुदाय के बढ़ते स्वरूप को दर्शाता है। इसमें सभी फ्लैग के रंगों को समाहित किया गया है।
LGBTQIA+ समुदाय में लगातार नए वर्ग जुड़ रहे हैं। ऐसे में यह फ्लैग समुदाय के बढ़ते स्वरूप को दर्शाता है। इसमें सभी फ्लैग के रंगों को समाहित किया गया है।