शतरंज के खिलाड़ी इस बात के लिए तैयार रहते हैं कि आगे कौन-सी चाल हम चलेंगे और कौन-सी सामने वाला चलेगा। आगे की सोच के कारण शतरंज के अधिकतर खिलाड़ी विक्षिप्त-से हो जाते हैं। ऐसे में उन्हें एक तैयारी यह भी रखनी है कि खेल तो खेलना है पर पागल नहीं होना है। जैसे मोहरे चाल चलते हैं, ऐसे ही ज़िंदगी में एक शतरंज चलती रहती है और वह है शब्दचाल की शतरंज। जब भी किसी के शब्द सुनें, कोई आपसे बात कर रहा हो तो केवल सुनिएगा नहीं। शतरंज के खिलाड़ी की तरह उन शब्दों के पीछे बोलने वाला व्यक्तित्व उस समय कैसा है, किस नीयत से बोल रहा है, उसके क्या इरादे हो सकते हैं इस पर भी नज़र रखें। व्यक्ति जैसा होता है, कभी-कभी उससे हटकर बोलता है। एक उदाहरण है कि कैकयी मंथरा के शब्दों को ठीक से पकड़ नहीं पाई थी। मंथरा बोल रही थी मैं तुम्हारी सबसे बड़ी हितैषी हूं। कैकयी समझ नहीं पाई कि इन शब्दों के पीछे मंथरा का मतलब क्या है। आज हमारी व्यावसायिक दुनिया में मंथराओं की कमी नहीं है। मंथरा वृत्ति है, जो अच्छे-अच्छे समझदारों को निपटा देती है। मंथराएं सत्ता, पावर की निकटता बनाने में माहिर होती हैं। मंथरा जैसे लोग अपनी कमजोरी छिपाने के लिए चापलूसी भरे शब्द, हितैषी बनने के दावे करके समझदारों की बुद्धि हर लेते हैं। इसलिए खासतौर पर बाहर की दुनिया में शब्द सुनते समय सावधान रहिए, क्योंकि बोलने वाले की नीयत सुनाई नहीं देती, उसके पीछे के भाव दिखाई नहीं देते।
जीने की राह
पं. विजयशंकर मेहता
humarehanuman@gmail.com
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