पटना। ब्रिटिश हुकूमत में बांकीपुर मैदान लॉन के रूप में जाना जाने वाले पटना के गांधी मैदान में तब पोलो खेला जाता था। आजादी की लड़ाई का भी यह गवाह बना और सन 42 आंदोलन के हीरो जयप्रकाश नारायण यानि जेपी का भव्य स्वागत हुआ। 1946 में इसी मैदान में श्रीकृष्ण सिंह की मौजूदगी में दिनकर ने जेपी के स्वागत में भावी इतिहास तुम्हारा है..कविता पढ़ी। पांच जून 1974 को खचाखच भरे गांधी मैदान में जेपी ने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया तो पटना से लेकर दिल्ली तक की गद्दी डोल गई। इससे पहले 1971 में बंगलादेश फतह करके लौटीं तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी हवाई अड्डे से खुली जीप पर पहुंची तो लाखों के हुजूम ने इसी गांधी मैदान में उन्हें सर आखों पर बिठाया। जेपी ने 4 नवंबर 1974 को इसी गांधी मैदान से एक लाख लोगों के हस्ताक्षर के साथ राजभवन कूच किया और आयकर चौराहे पर पुलिस की लाठियां खाई।
नीतीश ने झोंकी ताकत : नवंबर 2005 में बिहार की क मान संभालने के बाद नीतीश ने अलग-अलग नाम से बिहार की यात्राएं तो खूब कीं, लेकिन रैली पहली हो रही है। महीनों से पूरी सरकार जुटी है। जदयू कोटे के मंत्रियों, मुख्यमंत्री के अलावा पुलिस-प्रशासन, बिजली, नगर विकास, भवन निर्माण, पीएचईडी जैसे महकमे दिन-रात जुटे हैं। दस हजार छोटी-बड़ी गाड़ियां और कई रिजर्व रेलगाड़ियों से हजारों-लाख लोगों की आवाजाही बाकी है।
लालू राज में रैलियों का रेला
मंडल आयोग की सिफारिशों को लेकर देश की राजनीति ने करवट ली तो 1991 में तत्कालीन सीएम लालू प्रसाद ने गांधी मैदान में मंडल रैली की। वीपी सिंह, चंद्रशेखर, एसआर बोम्मई जैसे दिग्गजों के अलावा मौजूदा सीएम नीतीश कुमार भी मौजूद थे। रैली की सफलता के बाद लालू पिछड़ों के हीरो हो गए। 18 मार्च 1996 को लालू ने केंद्रीय सहायता के गाडगिल फार्मूले के विरोध में आवाज बुलंद करने और गरीबों को आवाज दिलाने के लिए गरीब रैली की। अगले साल गरीब महारैला किया जो संख्या बल के लिहाज से ऐतिहासिक रहा। लालू नेशनल हीरो हो गए। 30 अप्रैल 2003 को भाजपा-आरएसएस के खिलाफ लाठी रैली लालू शासनकाल की आखिरी रैली हुई।
तीन घंटे के शो के मायने क्या
विशेष दर्जा दिलाने की मुहिम चला रहे जदयू सवा करोड़ लोगों के हस्ताक्षर के साथ राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंप चुकी है। वर्ष 2001, 2002 और 2006 में बिहार विधानसभा इस आशय का सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित कर चुकी है। फिर करोड़ों के खर्च और इतनी मशक्कत के बाद तीन घंटे के इस शो के क्या मायने हैं, यह सवाल लाजमी है। रैली के संयोजक विजय चौधरी इसे बिहार को उसका वाजिब हक दिलाने की पहल बता रहे हैं, वहीं विपक्षी के नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी इसे राजनीतिक स्वार्थ बताते हैं। उनका कहना है कि जब इस मुद्दे पर सभी दल एकजुट हैं, तो नीतीश कुमार दल विशेष का मुद्दा बनाकर क्या हासिल करना चाहते हैं।