एजुकेशन डेस्क। चंडीगढ़ में पैदा हुई रुक्मिणी रायर ने 2011 में आईएएस परीक्षा में देश में दूसरा स्थान हासिल किया था। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज से मास्टर्स डिग्री लेने के बाद उन्होंने फर्स्ट टाइम में यह कामयाबी हासिल की थी। रुक्मिणी की कामयाबी इसलिए भी खास है, क्योंकि उन्होंने बिना किसी कोचिंग के यह उपलब्धि अपने नाम की। 6वीं क्लास में हो गई थीं फेल...
- एक इंटरव्यू में रुक्मिणी ने बताया था कि जब वे छठी कक्षा में पढ़ती थीं, तब स्कूल में फेल हो गई थीं।
- उन्हें डलहौजी के सेक्रेड हार्ट स्कूल में भेजा गया था।
- बोर्डिंग स्कूल के दबाव को झेलना उनके लिए मुश्किल हो गया था।
- पढ़ाई में रुचि कम होने लगी, लेकिन असफलता को उन्होंने अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया।
डिप्रेशन में रहने लगीं थी :
- फेल होने के बाद परिवार के लोग और शिक्षकों के सामने जाने की उनकी हिम्मत नहीं होती थी। यह सोचकर शर्म आती कि बाकी लोग इसके बारे में क्या सोचेंगे।
- महीनों इस टेंशन में रहने के बाद उन्होंने सोचा कि इस समस्या से उन्हें खुद ही बाहर निकलना है।
- इसी डर को उन्होंने अपनी प्रेरणा बना लिया। उन्होंने यह तय कर लिया कि बहाने बनाना या दूसरों को दोष देने का कोई फायदा नहीं।
स्टूडेंट्स को दिया संदेश :
- वे कहती हैं, यदि ठान लें तो असफलताएं हमारा रास्ता कभी नहीं रोक सकतीं।
- धैर्य और योजना के साथ तैयारी की जाए तो दुनिया की किसी भी परीक्षा में पास होना संभव है।
- असफलता ने उन्हें इतना मजबूत बना दिया कि वे हर काम पूरी तैयारी के साथ करने लगी।
- आईएएस परीक्षा में शामिल होने से पहले उन्होंने कई एनजीओ के साथ काम किया, ताकि देश की हालत को बेहतर समझ सकें।
- उन्होंने कभी पढ़ाई छोड़ने या कोई गलत कदम उठाने के बारे में नहीं सोचा।
सफल होने की जिद : स्कूल-कॉलेज या किसी कॉम्पिटीटिव एग्जाम में फेल होने का असर करियर पर नहीं होता। देश और दुनिया में ऐसे कई लोग है जो फेल होने के बाद भी सफल हुए। इन्हीं में से एक नाम रुक्मिणी रायर का भी है।
आगे की स्लाइड्स मे देखें रुक्मिणी रायर और उनकी फैमिली के कुछ फोटोज...
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