स्मिता को होने लगा था अहसास, ऐसी है मौत से कुछ घंटे पहले की कहानी

5 वर्ष पहले
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मुंबई.  स्मिता पाटिल को गुजरे हुए 31 साल हो गए हैं। 13 दिसंबर 1986 को मुंबई में 31 साल की उम्र में चाइल्डबर्थ कॉम्प्लिकेशंस के चलते उनकी डेथ हो गई थी। लेकिन स्मिता की मौत से कुछ घंटों पहले की कहानी पर नजर डालें तो महसूस होता कि पहले ही उन्हें अहसास हो गया था कि उनके साथ कुछ न कुछ होने वाला है। मौत से पहले के इन कुछ घंटो की कहानी पर डालते हैं एक नजर:

 

- 12 दिसंबर 1986 का वो दिन, बाकी दिनों की तरह ही था। सुबह 6 बजे जैसे ही बेटे (प्रतीक) के रोने की आवाज आई तो स्मिता बेड से उठीं और बड़े आराम से बेटे को चुप कराने की कोशिश करने लगीं। वे नहीं चाहती थीं कि बेटे के रोने की आवाज से हसबैंड राज बब्बर की नींद खुल जाए, जो देर रात तक काम करने के बाद घर लौटे थे। 
- स्मिता बेटे को लेकर नर्सरी में चली गईं और उसके भविष्य को लेकर कल्पना करने लगीं। कभी वे सोचतीं कि बेटा बड़ा होकर पेरेंट्स की तरह एक्टर बनेगा तो कभी सोचतीं कि नाना (शिवाजी पाटिल) की तरह पॉलिटिशियन। इतना ही नहीं, स्मिता ने इसी दौरान बेटे का नाम प्रतीक रखा और इसी से उसे पुकारने लगीं। 
- लेकिन इस दौरान प्रतीक अपना सिर मां की बॉडी से दूर कर रहे थे। तब स्मिता को महसूस हुआ कि उनकी बॉडी का तापमान बेटे को परेशान कर रहा है। दो दिन से स्मिता ने बेटे को छुआ तक नहीं था, ताकि वह वायरस से दूर रहे। लेकिन उस रोज (12 दिसंबर) वे बेटे को प्यार किए बगैर नहीं रह सकीं। 
- बता दें कि स्मिता की मौत से 15 दिन पहले ही यानी 28 नवंबर 1986 को प्रतीक बब्बर का जन्म हुआ था। 

 

बेटे के सो जाने के बाद स्मिता ने राज बब्बर को जगाया

 

- स्मिता ने खुद को नर्म कपड़ों में लपेटा और बेटे को फीडिंग कराने लगीं। इसके कुछ देर बाद बेबी सो गया। तब स्मिता बेडरूम में गईं और राज बब्बर को जगाया। - दरअसल, उस रोज राज को एक एक्शन कमिटी की मीटिंग अटेंड करनी थी। स्मिता ने राज का माथा छुआ और देखा कि कहीं उन्हें फीवर तो नहीं, जिसकी वजह से खुद को भी बुखार आ गया हो। हालांकि, राज की बॉडी का टेम्प्रेचर नॉर्मल था। 
- उस वक्त राज बब्बर को महीने-महीनेभर काम करना होता था। इसलिए स्मिता उनका पूरा ख्याल रखती थीं। वे यह सुनिश्चित करती थीं कि राज का सारा काम ठीक से चलता रहे। इस बार भी राज अपने इवेंट के लिए पूरी तरह एक्टिव थे और स्मिता चाहती थीं कि वे सक्सेसफुल हों।

 

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नोट : ऑथर भावना सोमाया ने अपने एक आर्टिकल में इस घटना का जिक्र किया है। भावना करीब 30 साल से सिनेमा के लिए लिख रही हैं और उनकी 12 बुक्स प्रकाशित हो चुकी हैं।