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...गिरे हैं बाल सर से, नूर चेहरे का हुआ गायब, कि मैंने उम्र बोई है तजुर्बों को उगाने में
बड़ेनखरे दिखाते हो तुम मेरे पास आने में, बहुत तकलीफ होती है मुझे तुमको बुलाने में, गिरे हैं बाल सर से नूर चेहरे का हुआ गायब, की मैंने उम्र बोई है तजुर्बों को उगाने में। यह कविता शहर के डॉ. शिवकांत ने पेश की। वे हनुमान गेट स्थित एक स्कूल में यशगीत काव्य गोष्ठी के तहत हुए कार्यक्रम में अपनी कविता पेश कर रहे थे।
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता ज्योतिषाचार्य एवं लेखक रविंद्र लाखोटिया ने की। इसका शुभारंभ डॉ. शिवकांत, कवि कृष्ण मंजर और शायर विजेंद्र गाफिल ने मां सरस्वती के सामने दीप प्रज्जवलित कर किया।
इसकी शुरूआत में महेंद्र सिंह ने सरस्वती वंदना पेश करते हुए गजल क्या है विषय पर व्याख्यान दिया। इस काव्य गोष्ठी का संचालन डॉ. श्याम वशिष्ठ ने किया।
उन्होंने भी अपनी ओर से एक रचना मैंने इस तरह संभाली हैं तुम्हारी सिसकियां, बंद अलमारी में मेरी रखी हुई हैं जिंदगियां पेश की। गीतकार कृष्ण मंजर ने अपनी रचना मेरे सुख दाता रहमत पर तेरे सजदे, हर डूबने वाले की कश्ती को किनारा दे पेश की। गजलकार विजेंद्र गाफिल ने अपनी रचना अाज इस वक्त में इतनी तपिश है गाफिल, अगर तूं चाहे तो लहू को उबाला जा सकता है पेश की। इसके अलावा इस कार्यक्रम में डॉ. रमाकांत शर्मा, हांसी से आई कवियित्री खुशबू जैन, डॉ. आभा अग्रवाल, डॉ. मनोज भारत, पूनम चंद वेणु, अनिल गौड़, महेंद्र कागजी आदि ने भी अपनी रचनाएं पेश की। इस मौके पर सूबेसिंह, अनिल रंगा, संदीप यादव और कार्यक्रम संचालक हरिओम गर्ग आदि भी थे।