मूल्यांकन एकांगी नहीं हो : पंकज
जयपालसिंह मुंडा को अधिकांश लोग हॉकी के एक अच्छे खिलाड़ी के नाते जानते हैं, जिनकी कप्तानी में पहली बार 1928 में भारत को ओलिंपिक में स्वर्ण पदक मिला था। हालांकि उन्होंने झारखंड पार्टी भी बनाई थी, जिसका बाद में कांग्रेस में विलय हो गया। लेकिन, उनके सामाजिक और राजनीतिक अवदान की अनदेखी कर दी गई। राजधानी के सूचना भवन सभागार में रविवार को उनके राजनीतिक योगदान पर विशद चर्चा हुई। अवसर था, अश्विनी कुमार पंकज द्वारा उन पर लिखी गई पुस्तक “मरंग गोमकेे जयपाल सिंह मुंडा’ के लोकार्पण का।
गोष्ठी में वक्ताओं का मानना रहा कि यह किताब जयपाल सिंह का समग्रता में मूल्यांकन करती है। राजनीतिक विश्लेषक संजय बसु मल्लिक बोले के जयपाल सिंह ने दो काम महत्वपूर्ण किए। कई भाषायी समूहों में बंटे आदिवासियों को उनकी जातीय और राजनीतिक भौगोलिक अस्मिता की पहचान कराई।
लेखकीय वक्तव्य में एके पंकज ने कहा कि मार्क्स हों या गांधी, लोहिया हों या कोई और हर नायक की अपनी कमजोरियां होती हैं, लेकिन हम उनके उस पक्ष को याद रखते हैं, जो उन्होंने जनहितार्थ किए हों। जयपाल सिंह मुंडा की पहचान महज एक खिलाड़ी और राजनीतिक एजेंट के बतौर समझी जाती रही। जबकि सच्चाई इससे बहुत अलग है। मुंडा को नए सिरे से पढ़ने और जानने की जरूरत है। उनका यही प्रयास रहा है कि उनका मूल्यांकन एकांगी हो। 350 रुपए की यह किताब विकल्प प्रकाशन, दिल्ली से छपी है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्यकार डॉ. बीपी केशरी ने की। स्वागत भाषण आयोजक संस्था झारखंड साहित्य संस्कृति अखड़ा की वंदना टेटे ने दिया। मौके पर कुशलमय मुंडा ने कहा कि यह पुस्तक जयपाल सिंह के तमाम पक्ष को सामने लाती है। उनके बारे में प्रचलित कई मिथ को तोड़ती है। सबसे पहले झारखंड शब्द का इस्तेमाल भी उन्होंने ही किया। संजय बसु मल्लिक ने जयपाल के उन दिनों के संस्मरण सुनाए, जो उन्हें लंदन यात्रा के दौरान वहां के लोगों से सुन रखे थे। गोष्ठी में महादेव टोप्पो, शंभु महतो, प्रवीण मुंडा, निराला और विनोद कुमार आदि कई लोग मौजूद रहे।
जयपाल सिंह मुंडा पर लिखित पुस्तक का लोकार्पण करते अश्विनी कुमार, संजय बसु मल्लिक, डॉ. बीपी केशरी अन्य।