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‘गर्व होता अगर दिल्ली, केरल की तरह झारखंड में कोई अवार्ड मिलता’

7 वर्ष पहले
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झारखंड में ठुमके वाली फिल्म चाहिए

झारखंडके फिल्मकारों को देश के साथ विदेशों में भी सम्मान मिल रहा है। हमारी फिल्मों को अमेरिका, डेनमार्क, जर्मनी की यूनिवर्सिटीज में दिखाई जा रही है, उसके बारे में पढ़ाई हो रही है, लेकिन यहां के स्टूडेंट्स को यहां की फिल्मों के बारे में ही नहीं पता। गाड़ी लोहरदगा मेल जैसी सांस्कृतिक फिल्म को भी कोई नहीं पूछता। सरकार या कहीं से भी डिमांड नहीं आती कि यह फिल्म कहीं दिखाई जाए। जहां केरल, महाराष्ट्र में रीजनल फिल्मों को बढ़ावा दिया जा रहा है, वहीं यहां सिर्फ पेपर में प्रोग्रेस की बात आती है। झारखंड में मंत्री लोगों को ठुमका नाच वाला सिनेमा चाहिए। यहां की कला-संस्कृति और मुद्दों से किसी को कोई सरोकार नहीं। मेघनाथ,नेशनल अवार्ड विजेता प्रसिद्ध फिल्ममेकर, झारखंड

ज्ञात हो कि बीजू टोप्पो को मेघनाथ के साथ 2010 में उनकी दो फिल्मों ‘आइरन इज हॉट’ और ‘एक रोपा धान’ के लिए दो नेशनल अवार्ड मिले थे। अभी तक उन्हें 20 फिल्मों के लिए नेशनल-इंटरनेशनल अवार्ड मिल चुके हैं। इनमें 10 प्रसिद्ध फेस्टिवलों में मिला, जिसमें मुंबई फिल्म फेस्टिवल, इंटरनेशनल फोक फिल्म फेस्टिवल, वातावरण फिल्म फेस्टिवल, साउथ एशिया ट्रेवलिंग फिल्म फेस्टिवल, इंडियन डॉक्यूमेंट्री प्रोड्यूशर्स एसोसिएशन अवार्ड आदि शामिल हैं। बीजू टोप्पो ने पहली फिल्म बांझी हत्याकांड पर 1996 में ‘शहीद जो अंजान रहे’ बनाई थी।

रांची }सिटी रिपोर्टर

शहर के प्रसिद्ध डॉक्यूमेंट्री फिल्म डायरेक्टर बीजू टोप्पो की फिल्म ‘द हंट’ को केरल में आयोजित 9वें इंटरनेशनल डॉक्यूमेंट्री एंड शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट फिल्म का अवार्ड मिला। इससे पहले पिछले साल अक्टूबर में सीएमसी वातावरण फिल्म फेस्टिवल में भी इस फिल्म को स्पेशल जूरी अवार्ड मिला था। मुंबई फिल्म फेस्टिवल सहित कई नेशनल-इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में यह फिल्म दिखाई जा चुकी है, हर जगह तारीफ मिली। तिरुवनंतपुरम में मौजूद बीजू टोप्पो ने कहा कि मुझे बहुत खुशी है कि यहां अवार्ड मिला, लेकिन अपने प्रदेश में कभी ऐसा फिल्म फेस्टिवल आयोजित होता, हमें अवार्ड मिलता, तो हमारी खुशी कुछ और ही होती। केरल में मुख्यमंत्री फिल्में देखने आते हैं, उपमुख्यमंत्री से अवार्ड मिलता है। फिल्म कल्चर ऐसा डेवलप है कि डॉक्यूमेंट्री फिल्में देखने 500 से हजार लोग हर दिन आते हैं। हमारे प्रदेश में टैलेंटेड फिल्मकार हैं, उनमें विजन है, लेकिन सरकार से कोई सपोर्ट नहीं मिलने से हमारी मेहनत को हमारे लोग ही नहीं देख पाते हैं।

तीनराज्यों में हुई है शूटिंग

27मिनट की ‘द हंट’ नक्सलियों और पुलिस की लड़ाई के बीच पिस रहे लोगों की कहानी है। फिल्म में नक्सलियों के नाम पर हो रहे खेल को विस्तार से दिखाया गया है। आम लोग कैसे पिस रहे हैं, उनकी क्या समस्याएं हैं इसे फिल्म में उठाया गया है। इसकी शूटिंग झारखंड के अलावा छत्तीसगढ़ और ओड़िशा में हुई है। इससे पहले नगड़ी आंदोलन पर ‘रेसिस्टेंट’, अपनी जड़ों से कटो लोगों पर ‘सोना गाही पिंजरा’ फिल्म बना चुके हैं।