दिल्ली-मुंबई से भी आगे है ये गांव, हजार सालों से बिना शादी साथ रह रहे हैं कपल

6 वर्ष पहले
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जहां भारतीय समाज में लड़के और लड़की का शादी से पहले साथ रहना (लिव-इन) ठीक नहीं माना जाता, वहीं राजस्थान की एक जनजाति के लोग पहले कुछ समय साथ रहते हैं और फिर शादी करते हैं। उदयपुर जिले के गरासिया जनजाति बहुल गांवों में ये प्रथा सैकड़ों सालों से चली आ रही है। खास बात यह है कि इन गांवों में लड़कियों को लड़कों से ऊपर दर्जा दिया जाता है। नया नहीं है लिव-इन का कांसेप्ट ...
 
कैसे चुनते हैं साथी?
उदयपुर जिले के नयावासा इलाके में निवास करने वाली गरासिया जनजाति में दो दिनों की दापा प्रथा चलती है, जिसमें युवक-युवती अपना साथी खुद चुनते हैं। उनकी शादी के लिए उन पर कोई दबाव नहीं डाला जाता। ये उनकी मर्जी होती है कि वे कब अपने रिश्ते को विवाह का औपचारिक रूप देना चाहते हैं।  
 
इस प्रथा में क्या नियम होते हैं?
अपना साथी चुनने बाद वहां पर जोड़ियां साथ में रह सकती हैं। लेकिन खास बात यह है कि लिव-इन सरीखे इस रिश्ते को भी पूरी ईमानदारी और वफादारी के साथ निभाना होता है। बिना विवाह के साथ रहती ये जोड़ियां बच्चे भी पैदा करती हैं और उनका पालन-पोषण भी करती हैं। इस इलाके में कई बार बुजुर्गों के विवाह होते हैं, जिनमें उनके बच्चे भी शामिल होते हैं। ऐसे रिश्ते में एक स्वतंत्रता यह भी है कि अगर बच्चे नहीं होते, तो वर्तमान साथी से रिश्ता तोड़कर किसी और को अपना साथी बनाया जा सकता है।   
 
लड़के के घर वाले देते हैं पैसे 
जब युवक किसी युवती को अपना साथी चुन लेता है, तो उसके घर वालों को लड़की के घर वालों को पैसे देने होते हैं और शादी का खर्च भी वही उठाते हैं।
 
अगर लड़की किसी और के साथ रहना चाहे?
अगर लड़की अपने साथी के साथ खुश न हो, तो वह दूसरे लड़के के साथ रह सकती है। लेकिन दूसरे लड़के को पहले वाले लड़के से ज्यादा पैसे देने होंगे।  
 
गांव में क्या माना जाता है?
यह आदिवासी समाज कई मायनों में शहरी समाज से ज्यादा प्रगतिशील है। वहां पर लड़के और लड़कियों दोनों को बराबरी के अधिकार दिए जाते हैं। हर लड़की के पास रिजेक्ट और चुनने, दोनों का अधिकार होता है।  
 
इन सालों में क्या बदला?
पहले इस तरह का रिश्ता सिर्फ मौखिक वादे के आधार पर बनाया जाता था, लेकिन अब कई मामलों में इसके लिए लिखित अनुबंध होता है।
 
इस प्रथा के क्या फायदे हैं?
दापा प्रथा में युवक, युवती दोनों को साथी चुनने की बराबर आजादी है, यानी साथ मन पर निर्भर होता है। इन रिश्तों में जबरदस्ती की कोई गुंजाइश नहीं होती। शादी से पहले ही साथी को पूरी तरह से समझ लेने का मौका मिलता है। लड़की के परिवार वालों को दहेज की चिंता नहीं होती, उल्टे उन्हें ही धन मिलता है। विभिन्न आधारों पर रिश्ता खत्म करने और नया रिश्ता जोड़ने की आजादी भी है।