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परिजनों से पीड़ित बच्चों का भविष्य संवारेगा ग्रुप
परिजनों से पीड़ित चार बच्चों का भविष्य संवारने के लिए सार्थक ग्रुप ने कदम बढ़ाए हैं। बच्चों की जीवन गाथा ऐसी कि जो भी इनकी दास्तां पढ़ेगा निश्चित ही उसकी आंखों में आंसू की बूंदें बह जाएंगी।
ग्रुप संयोजक मनोज राठी बारदान वाला ने कहा कोई बेटा-बेटी भीख नहीं मांगता है तो उनके माता-पिता उन्हें पीटते हैं, तो किसी के सिर से माता-पिता का साया उठने के बाद मामा-मामी के यहां रहता है। लेकिन वह भी प्रताड़ित करने से बाज नहीं आते। ग्रुप सदस्य शांतिलाल सिंगोटिया को जब यह बच्चे भीख मांगते दिखे तो इन्हें लेकर मेरे पास पहुंचे। बच्चाें के चेहरे देख मेरा दिल भी पसीज गया। मैंने सभी बच्चाें के 21 वर्ष तक होने तक उनकी शिक्षा से लेकर रहने तक का खर्च वहन करने की ठान ली। मैंने बच्चों के रहने के लिए ग्रुप सदस्य ऋषभ खंडेलवाल के मकान का एक हिस्सा किराए से लिया।
ये हैं वो बच्चे जिनका संपूर्ण खर्च उठाएगा सार्थक ग्रुप।
परेशान होकर घर से भागे, भीख मांग कर कर रहे गुजारा
10 वर्षीय बालिका व उसका 8 वर्षीय भाई सुनील रतलाम के रहने वाले हैं। शायद यह पहला केस होगा कि इन दोनों बच्चों के माता-पिता उनसे भीख मंगवाते हंै। यही नहीं, भीख की राशि से पिता शराब पी जाते हंै। भीख नहीं मिलने पर इन्हें पीटते हैं।
आदिवासी समाज के 12 वर्षीय राहुल रतलाम जिले के रावटी का रहने वाला है। राहुल के माता-पिता गुजर जाने के बाद वह अपने मामा-मामी के यहां रहता है। लेकिन वह भी उसे प्रताड़ित करने से बाज नहीं आते हैं। प्रताड़ना से तंग आकर राहुल घर से भागकर रतलाम आ गया। यहां भीख मांगकर अपना गुजारा करने लगा।
14 वर्षीय भरत शेखावत माता-पिता की मृत्यु के बाद रिश्तेदारों के पास रहता है। रिश्तेदार उसे पढ़ाने की बजाए उससे क्षमता से अधिक कार्य लेने के साथ प्रताड़ित करते थे। भरत ने वहां से भागकर ट्रेनों में भीख मांगकर गुजर बसर किया। उसने कुछ समय सुलभ काॅम्पलेक्स में भी काम किया।
अच्छी पहल