अमृतसर। सिखों के पांच धार्मिक चिह्नों में से एक, किरपान अमृतसर की पहचान बन गई है। देश-विदेश से आने वाले टूरिस्ट इसे पवित्र शहर की निशानी के तौर पर अपने साथ ले जाते हैं। इसे अपना असली रूप लेने से पहले कई हाथों से गुजरना पड़ता है।
इसे तैयार करने का काम भी काफी बारीकी और मीनाकारी का होता है। शहर में इसका बड़े पैमाने पर निर्माण किया जा रहा है। कारखानों में रोजाना किरपानों की धार तेज करने में कारीगर जुट रहते हैं।
आज भी बरकरार है किरपान की चमक
किरपान यानी तलवार के वीरों का शृंगार होती है। अतीत में जब आज की तरह से गोली-बारूद नहीं हुआ करते थे उस वक्त युद्ध का प्रमुख हथियार होती थी किरपान। यह हमारी जीवन शैली में इतनी रच-बस गई है कि शादी-विवाह व अन्य कई रस्मो-रिवाज का यह अहम हिस्सा है।
यह सिक्खी की आन-बान शान भी है। भले ही आज इसकी जंग में जरूरत नहीं होती, लेकिन धार्मिक महत्ता तथा शोपीस के रूप में इस्तेमाल होने के नाते इसकी मांग आज भी है और इसी पर फल-फूल रहा है किरपान उद्योग।