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तपस्या से दूर होते हंै दोष : प्रमाण सागर
साधारणसी मिट्टी अग्नि में तपने के बाद मंगल कलश का रूप धारण कर माथे की शोभा बन जाती है। इसी प्रकार मनुष्य जब तपस्या से अपने आप को तपाता है, तो अपने अंदर अनेक प्रकार की विलक्षणता को उद्घाटित कर सकता है। तपस्या वह प्रक्रिया है जो हमारे दोषों और दुर्बलता को दूर करके हमें समर्थ और समतावान बना देती है
धर्म प्रभावना समिति द्वारा ‘आचार्य श्री विद्यासागर तपोवन’ पंचायत बड़ा धड़ा, छतरी मंदिर प्रांगण, वैशाली नगर के पंडाल में पर्वराज पर्युषण पर्व के सातवें दिन ‘उत्तम तप धर्म’ पर मुनि प्रमाण सागर महाराज ने मंगल प्रवचन में कहा कि भारतीय परंपराओं में तपस्या को सबसे अधिक महत्व दिया, क्योंकि तप साधना से ही तुम अपना वास्तविक उत्कृष्ट कर सकते हो। करोड़ों जन्मों में अर्जित पाप तपस्या के बल पर क्षण भर में साफ कर सकते हो। मुनि ने कहा कि सोने में निखार लाने के लिए उसमें छिपी बुराइयां, विकृतियां दूर करने के लिए उसे तपाना पड़ता है। इसी प्रकार आत्मा को तपाने से बुराइयां दूर होती है और जीवन का शुद्ध स्वरूप प्रकट होता है। वस्तुतः तपस्या के माध्यम से अपने जीवन की शुद्धता को प्रकट कर सकते हो।
मुनि ने कहा कि भूखे रहने का नाम तपस्या नहीं, भूख की इच्छा को जीतने का नाम तपस्या है। तपस्या की बात करना सरल है। लेकिन अपने भीतर तपस्या को घटित करना बड़ा कठिन है। भोजन छोड़ देना सरल है, अंदर के विकारों को दूर करना कठिन है। जो तप करते हैं वो अपने मन के विकारों के प्रति सजग रहते हैं। इन दिनों बहुत सारे लोग तपस्या कर रहे हैं, किसी का उपवास तो किसी का एकासन चल रहा है। कोई रस परित्याग इत्यादि कर रहा है यह भी तप का एक ढंग है। उद्देश्य से विचलित हो जाते है तब ये तपस्या हमारे लिए कोई काम की नहीं।
प्रवक्ता पदमचंद सोगानी ने बताया मुनि प्रमाण सागर एवं मुनि विराटसागर महाराज के सानिध्य में चल रहे श्रावक संस्कार शिविर के सातवें दिन सोमवार को ध्यान साधना, जिनेंद्र प्रभु की वृहद शांतिधारा, सौधर्म इंद्र सहित 16 इंद्र इंद्राणियों के साथ सभी शिविरार्थियों द्वारा संगीतमय तत्वार्थ सूत्र विधान एवं दशलक्षण धर्म पूजन किया गया।