कोटा. शिक्षा विभाग ने 31 अगस्त से लाडपुरा पंचायत समिति के अखावा गांव का प्राथमिक स्कूल बंद कर दिया। विभाग के आला अफसरों ने ऐसा केवल इसलिए किया क्योंकि जंगल में स्थित इस गांव के स्कूल में कोई शिक्षक जाना ही नहीं चाहता। ये फैसला इतने गुपचुप ढंग से लिया कि ग्रामीणों को इसकी भनक तक नहीं लगी। 1 सितंबर को स्कूल पर ताला लगा देखा तो ग्रामीणों ने सरपंच शिवराम व पूर्व सरपंच गोविंद भड़क को बताया।
विभाग के अधिकारियों से बात करने पर पता चला कि स्कूल को 4 किमी दूर चांदबावड़ी मिडिल स्कूल में मर्ज कर दिया गया है। ये पूरा रास्ता जंगल से होकर गुजरता है। रास्ते में कई बरसाती नाले हैं। इस इलाके में दिन में भी पैंथर और भालू का मूवमेंट रहता है। इसके चलते गांववाले अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज रहे हैं।
गांव के नारायण, गोविंद, छोटू, पप्पू, मांगीलाल, कान्हा, रतनलाल व सांवरा ने कहा कि शिक्षा विभाग ने स्कूल की गलत रिपोर्ट बनाई। 30 सितंबर 2015 तक 7 व स्कूल मर्ज होने तक 11 बच्चों के नामांकन की रिपोर्ट सरकार को भेजी गई। जबकि अखावा के 45 से ज्यादा बच्चे स्कूल जाते हैं। विभाग ने केवल शिक्षक की सुविधा के लिए स्कूल को मर्ज कर दिया। चूंकि चांदबावड़ी जगपुरा से सड़क से जुड़ा है। शिक्षक वहां आसानी जा सकता है।
मर्ज करते समय अपने नियम ही भूल गया विभाग, दूरी का नहीं रखा ध्यान, 45 की बजाय बता दिए 11 बच्चे
जंगली जानवरों के डर से 5वीं के बाद रिश्तेदारों के यहां पढ़ते हैं बच्चे
ग्रामीण मोहन व मीठूलाल ने कहा कि चांदबावड़ी स्कूल का रास्ता दुर्गम है। ऐसे में 5वीं के बाद आगे की पढ़ाई के लिए बच्चों को ननिहाल या रिश्तेदारों के यहां भेज देते हैं।