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आसमान में उड़ता था प्रताप का घोड़ा, 26 फीट का नाला लांघ गया था 1 छलांग में

8 वर्ष पहले
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महाराणा प्रताप की 475वीं जयंती वर्ष पर दैनिक भास्कर मेवाड़ शिरोमणि के अछूते पहलुओं को बता रहा है। आज की कड़ी में, महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक के बारे में।
चें तक अरि ने बोल दिया, चेतक के भीषण वारों से।
कभी न डरता था दुश्मन की लहू भरी तलवारों से।

चेत करो, अब चेत करो, चेतक की टाप सुनाई दी।
भागो, भागो, भाग चलो, भाले की नोक दिखाई दी।
चेतक क्या बड़वानल है वह, उर की आग जला दी है।
विजय उसी के साथ रहेगी, ऐसी बात चला दी है।
हल्दीघाटी काव्य में श्याम नारायण पांडेय की ये पंक्तियां महाराणा प्रताप के प्राण प्रिय घोड़े चेतक को लेकर लोक राग की तरह पैठ चुकी हैं। हल्दीघाटी के युद्ध में प्रताप का अनूठा सहयोगी था चेतक। बाज नहीं, खगराज नहीं, पर आसमान में उड़ता था। इसीलिए नाम पड़ा चेतक। स्वामिभक्ति ऐसी कि दुनिया में वह सर्वश्रेष्ठ अश्व माना गया। प्रताप और चेतक का साथ चार साल रहा।
चेतक के मुंह में लगती थी हांथी की सूंड
चेतक की ताकत का पता इस बात से लगाया जा सकता था कि हल्दीघाटी का युद्ध शुरू हुआ तो चेतक ने अकबर के सेनापति मानसिंह के हाथी के सिर पर पांव रख दिए और प्रताप ने भाले से मानसिंह पर संहारक वार किया। चेतक के मुंह के आगे हाथी कि सूंड लगाई जाती थी। जब मुगल सेना महाराणा प्रताप के पीछे लगी थी, तब चेतक प्रताप को अपनी पीठ पर लिए 26 फीट के उस नाले को लांघ गया, जिसे मुगल पार न कर सके।
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स्रोत : प्रताप शोध प्रतिष्ठान
नोट:- सभी तस्वीरों का प्रयोक प्रतीक मात्र के लिए किया गया है।