भोपाल से 200 किमी दूर गोरखपुर गांव में करीब 1000 साल पुरानी दीवार के अवशेष मिलने की खबर dainikbhaskar.com पर पब्लिश होने के बाद भारत सरकार और स्थानीय प्रशासन हरकत में आया। स्टेट ऑफ कल्चर एंड टूरिज्म मिनिस्टर महेश शर्मा ने आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ़ इंडिया से साइट का मुआयना कर इस एतिहासिक जगह को जल्द से जल्द भारत सरकार द्वारा टेकओवर करने की बात कही है। बता दें कि वर्ल्ड हैरिटेज वीक (19 से 25 नवंबर) के दौरान dainikbhaskar.com की टीम ने बेहाल पड़ी साइट का मुआयना किया तो कई हैरान करने वाली बातें सामने आई थी। कितनी है दीवार की लम्बाई...
- इस दीवार की लम्बाई 80 किमी से भी ज्यादा है, जो उदयपुरा (रायसेन जिला) के गोरखपुर गांव से सटे जंगल से शुरू होती है और भोपाल से 100 किमी दूर बाड़ी बरेली (चौकीगढ़ किले) तक जाती है।
- आर्किलोजिस्ट डॉ. नारायण व्यास के मुताबिक, विंध्याचल पर्वत श्रृंखला की पहाड़ियों पर घने जंगलों के बीच 10 वीं से 11 वीं सदी के बीच परमार कालीन राजाओं ने इसे बनवाया होगा। इसकी बनावट से यह प्रतीत होता है कि संभवतः दीवार परमार कालीन राज्य (टाउनशिप) की सुरक्षा दीवार रही होगी।
- यह कई जगह से टूटी है, फिर भी इसकी ऊंचाई 15 से 18 फीट और चौड़ाई 10 से 15 फीट है। कुछ जगह इसकी चौड़ाई 24 फीट तक है।
क्यों बनवाई गई होगी दीवार...
डॉ. नारायण व्यास के मुताबिक, परमार वंश के राजाओं ने यह दीवार अपने राज्य की सुरक्षा के लिए बनवाई होगी। गोरखपुर गांव से आगे नरसिंहपुर और जबलपुर पड़ता है, जो 10-11 वीं सदी में कल्चुरी शासकों के अंतर्गत आता था। बता दें कि परमार और कल्चुरी शासकों में आपस में युद्ध हुआ करते थे। कल्चुरी शासकों के हमलों से बचने के लिए ही शायद इतनी ऊंची दीवार बनाई गई हो। गौरतलब है कि दूसरी शताब्दी में चीन के पहले सम्राट किन शी हुआंग ने भी चीन की दीवार का निर्माण विदेशी हमलों से मिंग वंश को बचाने के लिए किया था।
कैसी है दीवार की बनावट...
- दीवार को बनाने में लाल बलुआ पत्थर की बड़ी चट्टानों का इस्तेमाल किया है। इसके दोनों ओर विशाल चोकोर पत्थर लगाए गए हैं।
- हर पत्थर में त्रिकोण आकार के गहरे खांचे बने हुए हैं, जिनसे पत्थरों की इंटरलॉकिंग की गई है। इसलिए जुड़ाई में चूना, गारा आदि का इस्तेमाल नहीं किया गया है।
- हालांकि, दीवार के बीच में पत्थर के टुकड़े, मिट्टी और कंकड़ का भराव किया गया है।
- कहीं-कहीं पत्थरों को जोड़ने के लिए लोहे के डावेल्स का भी इस्तेमाल किया गया है।
- गोरखपुर से 8 किमी (रोड़ रूट) दूर मोघा डैम पर इस दीवार का काफी हिस्सा सुरक्षित है।
- कहीं-कहीं पत्थरों को जोड़ने के लिए लोहे के डावेल्स का भी इस्तेमाल किया गया है।
- गोरखपुर से 8 किमी (रोड़ रूट) दूर मोघा डैम पर इस दीवार का काफी हिस्सा सुरक्षित है।
क्या कहते हैं स्थानीय लोग...
- मध्य भारत भारतीय इतिहास संकलन समिति के विनोद तिवारी ने बताया कि 'दीवार के लिए हमने कई प्रशासन से मदद मांगी और बेशकीमती मूर्तियों के चोरी होने की जानकारी भी दी, लेकिन अभी तक कोई देखरेख की व्यवस्था नहीं की है। हमने पुरातत्व विभाग से भी अनुरोध किया था कि इस ऐतिहासिक धरोहर को सहेजने की दिशा में काम किया जाए। प्रशासन चाहे तो यह स्थान एक पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किया जा सकता है।'
- साइट के पास ही आश्रम में रहने वाले सुखदेव महाराज का कहना है कि 'मूर्तियों के अवशेष इधर-उधर बिखरे पड़े हैं, हम अपने स्तर पर इनकी देखरेख कर सकते हैं, लेकिन इनका संरक्षण को प्रशासन को ही करना है। आदिवासियों और मू्र्ति चोर लगातार इस जगह को नुकसान पहुंचा रहे हैं, जिस पर जिला प्रशासन और पुरातत्व विभाग को ध्यान देना चाहिए।'
IMPACT:
भारत सरकार साइट को करेगी टेक ओवर
हम इस साइट का मुआयना आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ़ इंडिया करवाएंगे। जैसा की दैनिक भास्कर ने बताया कि यदि ये दीवार 100 साल से भी पुरानी है तो भारत सरकार इस एतिहासिक दीवार को तत्काल टेक ओवर कर इसकी खुदाई करवाई जाएगी। मैं इस साइट के बारे में और जानकारी लेकर जल्द से जल्द आदेश जारी करता हूं। - केन्द्रीय मंत्री महेश शर्मा (स्टेट ऑफ कल्चर एंड टूरिज्म मिनिस्ट्री)
हम टीम भेज रहे हैं। पर्यटन केंद्र बनाने के लिए जो भी कर सकते हैं, वो करेंगे। -सुरेंद्र पटवा, पर्यटन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
ये बहुत महत्वपूर्ण खोज है। चाइना वॉल के बाद इतिहास की इतनी महत्वपूर्ण धरोहर मिली है यह हमारे जिले के लिए गौरव की बात है। हम जल्द से जल्द इसका प्रारंभिक सर्वे कर इसकी थ्रीडी मैपिंग कराएंगे ताकि दीवार की वास्तविक लंबाई ज्ञात हो सके। इसके अलावा इस साइट के आसपास जो भी अतिक्रमण होगा, उसे तुरंत हटाया जाएगा। क्योंकि यह पुरातत्व की तकनीक से जुड़ा मामला है, इसलिए हम इसके संरक्षण और डाक्युमेंटशन के लिए पुरातत्व विभाग को अपनी ओर से प्रस्ताव भेजेंगे, ताकि यह और बेहतर तरह से लोगों के सामने आ सके। - लोकेश जाटव, कलेक्टर रायसेन
आगे की स्लाइड में जानिए 1000 साल पुरानी दीवार के पास और क्या-क्या मिला...
स्टोरी और फोटोग्राफ्स - आदित्य बिड़वई, अविनाश श्रीवास्तव, अमृत पाल सिंह
एक्सपर्ट - डॉ. नारायण व्यास (Retired Superintending Archaeologist, ASI), विनोद तिवारी (मध्य भारत भारतीय इतिहास संकलन समिति)