कोई खबर भड़काने, उकसाने वाली तो नहीं? मिनटों में पता चल जाएगा, इसे तैयार करने वाली टीम के वैज्ञानिक का इंटरव्यू
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (आईसर) के वैज्ञानिकों और शिक्षकों की टीम ने तैयार किया ऐप, वेबसाइट
- फिक्शन और नॉन फिक्शन कैटेगरी में करता है काम, भड़काने वाली खबरों से बचाने में कारगर
फैक्ट चेक डेस्क. इन दिनों सोशल मीडिया पर भड़काऊ और उकसाने वाली खबरों का वायरल होना आम है। कई बार पाठक इस तरह का कंटेंट समझ नहीं पाते और इसे शेयर कर देते हैं, जिससे कई बार स्थितियां बिगड़ भी जाती हैं। इस समस्या के समाधान के लिए भोपाल स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (आईसर) के वैज्ञानिकों और शिक्षकों की टीम ने एक ऐप तैयार किया है।
इस ऐप की मदद से मिनटों में यह पता किया जा सकता है कि कोई कंटेंट भड़काऊ या उकसाने वाला तो नहीं है। ऐप के साथ ही इसकी वेबसाइट भी लॉन्च की गई है। जिसके जरिए कंटेंट की विश्वसनीयता परखी जा सकती है। ऐप को तैयार करने वाली टीम के लीडर प्रोफेसर डॉ. कुशल शाह ने दैनिक भास्कर मोबाइल से खास बातचीत करते हुए बताया कि आखिर ये कैसे काम करता है। देखिए वीडियो।
गूगल प्ले स्टोर कर सकते डाउनलोड
न्यूज चेज नाम के इस ऐप को गूगल प्ले स्टोरी से डाउनलोड किया जा सकता है। इसको इस्तेमाल करने का कोई चार्ज नहीं है। यह मशीन लर्निंग की मदद से काम करता है। डॉ शाह के अलावा डॉ. राजकृष्णन, एल्म्नाय रमीज कुरैशी, आईआईटी दिल्ली के सिद्धार्थ रंजन, अंडरग्रेजुएट स्टूडेंट अरमान काजमी और श्रीनिवासुला कौशिक ऐप को तैयार करने वाली टीम में शामिल हैं। ऐप को 17 नवंबर को प्ले स्टोर पर लॉन्च किया गया।
इटली में हुईं कॉन्फ्रेंस में रिसर्च पेपर पब्लिश
- डॉ. राजकृष्णन बताते हैं- इस एप पर हुई रिसर्च एसोसिएशन फॉर कंप्यूटेशन लिंगुइस्टिक की ओर से इटली में आयोजित एनुअल कॉन्फ्रेंस में पब्लिश हुई। मशीन लर्निंग के पैमानों पर इस एप को 96 प्रतिशत तक सटीक पाया गया।
- फेक न्यूज दो तरह की होती हैं, एक जिनमें तथ्य ही सही न हों, दूसरी फेक न्यूज वो होती हैं, जिनमें तथ्य तो सही होते हैं, लेकिन इस तरह से लिखी जाती हैं कि वे उसके सही मतलब से अलग, लोगों के विचार को विपरीत दिशा में मोड़ने का काम करती हैं। इन्हें ही मैनीपुलेटिव खबरें कहते हैं। असल मायने में देखें, तो यह खबरें ही ज्यादा हानिकारक हैं। यह ऐप ऐसी ही मैनीपुलेटिव खबरों की परख करता है।
इस तरह से करता है काम
- मैनिपुलेटिव यानी फिक्शन आर्टिकल्स में जितने एडजेक्टिव (विशेषण) थे, उससे लगभग दुगने एडवर्ब (क्रिया विशेषण) का इस्तेमाल किया गया था।
- सटीक खबरों यानी नॉन फिक्शन न्यूज आर्टिकल्स में जितने प्रोनाउन (सर्वनाम) इस्तेमाल किए गए थे, उसके दुगने एडजेक्टिव (विशेषण) इस्तेमाल किया गया था।
- डॉ शाह के मुताबिक, अलग-अलग न्यूज पोर्टल्स से ली गई खबरों को रिलायबल, ऑल राइट और बी-अवेयर टैग देते हैं।
- रिलायबल यानी वह न्यूज जिनकी नॉन-फिक्शन कैटेगरी में होने की एक्यूरेसी 75 से 100 प्रतिशत के बीच है।
- बी-अवेयर यानी वह न्यूज जिनकी फिक्शन कैटेगरी में होने की एक्यूरेसी लेवल 75 -100 प्रतिशत के बीच है।
- जो बाकी के आर्टिकल्स हैं उन्हें ऑल राइट का टैग दिया गया है। इसका मतलब है कि बी-अवेयर कैटेगरी खबरों के ज्यादातर शब्द मैनिपुलेटिव भाषा के दायरे में आ रहे हैं।
- इस ऐप को जल्द ही हिंदी भाषा के लिए भी लॉन्च किया जाएगा। अभी यह सिर्फ अंग्रेजी के लिए उपलब्ध है।