जैसे को तैसा की नीति से भारत बन सकता है महाशक्ति

3 वर्ष पहले
  • कॉपी लिंक
  • चीन के पास फिलीपीन्स में बनाएं सैन्य ठिकाने और एर्दोगन को दें कुर्दों के साथ मध्यस्थता का प्रस्ताव

( भरत कर्नाड, सुरक्षा विशेषज्ञ )   पिछले पखवाड़े ताइपेई में युशान फोरम 2019 में भाग लेने गया था। यह ताइवान सरकार की क्षेत्रीय भागीदारी बढ़ाने की कवायद है, जो वह चीन द्वारा उसे अलग-थलग करने की दंडात्मक नीतियों से निपटने के लिए हर साल करता है। उसके बाद मैं इस्तांबुल गया, जहां सीरियाई कुर्दों के खिलाफ राष्ट्रपति एर्दोगन के युद्ध से लोगों में बेचैनी है। खासतौर पर सीएनएन के उन वीडियो के बाद, जिनमें तुर्की समर्थित आतंकियों द्वारा कुर्द नागरिकों पर बेरहम अत्याचारों का खुलासा हुआ है। लेकिन, नरेन्द्र मोदी सरकार के लिए यही समय है कि वह कश्मीर मामले में टांग फंसाने वाले एर्दोगन को उन्हीं के शब्दों में जवाब दें। नई दिल्ली को कुर्दों और तुर्की के बीच मध्यस्थता की पेशकश करना चाहिए।  उधर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की फिलीपीन्स यात्रा पिछले 70 वर्षों में भारत की ओर से हुई सिर्फ तीसरी यात्रा है। चीन से चुनौतियां झेल रहे भारत के लिए महत्वपूर्ण इस देश को उतना महत्व नहीं दिया गया, जितने का यह हकदार है। क्षेत्रीय नेताओं में वास्तव में करिश्माई फिलीपीन्स के राष्ट्रपति रोड्रिगो दुदेर्ते ने बेबाकी से कहा कि मनीला के प्रयासों के बावजूद भारत सरकार ने उदासीनता ही दिखाई। उन्होंने उनके देश की रक्षा क्षमता बढ़ाने में भारतीय भूमिका का स्वागत किया और कहा कि हिंद महासागर में दोनों देश रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थिति में है और दोनों के साझा समुद्री हित हैं। इसके लिए उन्होंने निपुण व फुर्तीली कूटनीति को जरूरी बताया। शायद रणनीतिक फोकस की कमी की भारत की कमजोरी को जानते हुए उन्होंने यह बात कही। हालांकि धौंस जमाते चीन से निपटने के लिए फिलिपीन्स की भू-रणनीतिक उपयोगिता के प्रति भारत ने शायद देरी कर दी। प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में मामल्लपुरम में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ मुलाकात कर चीन के वुहान में हुई ऐसी ही अंतरंग मुलाकात की भावना को जीवित करने की कोशिश की पर उसमें कोई बहुत सफलता मिलती दिखाई नहीं दी। शी फालतू बातों का शोर मचाए बिना शांति से पुराना राग आलापते रहते हैं, जिससे उनकी जेब से जाता कुछ नहीं और चीनी हितों से थोड़ा भी समझौता किए बिना वे उसे साधने में लगे रहते हैं। सवाल है कि चीनी चुनौती के खिलाफ फिलीपीन्स हमारी क्या मदद कर सकता है? कुछ महीने पहले भारतीय सेना की टीम का एक लीडर फिलीपीन्स की यात्रा पर था। उसने मनीला से पूछा कि चीनी खतरे के खिलाफ सैन्य क्षमता के निर्माण के लिए उसे जो भी चाहिए वह बताएं। इससे अत्यंत प्रभावित होकर मनीला ने लंबी सूची सामने रख दी। लेकिन, फिलीपीन्स ने इस बात की  झलक भी दिखाई कि वह भारत को क्या दे सकता है। वह चीनी नौसेना व युद्धपोतों की गतिविधियों की रियल टाइम जानकारी दे सकता है। वैसे बता दें कि भारत पहली बार मनीला में डिफेंस अताशे नियुक्त कर रहा है। वह समुद्री क्षेत्र में सुरक्षा सहयोग का समन्वय करेगा। इसके तत्काल बाद भारत  फिलीपीन्स के द्वीपों पर राडार और इलेक्ट्रॉनिक खुफिया स्टेशन खड़े करने में मदद करेगा। बदले में मनीला भारतीय नौसेना और वायुसेना को सुबिक की खाड़ी में मौजूद अमेरिका के पूर्व नौसैनिक ठिकानों का इस्तेमाल करने में उदारता दिखाएगा। इस तरह चीन की दहलीज पर एक स्थायी भारतीय नौसैनिक व वायु सैनिक उपस्धिति होगी। लेकिन, भारतीय नौसेना में सीमिति विज़न वाले इनकार की मुद्रा में रहने वाले और पाकिस्तान पर केंद्रित वायुसेना ऐसी तैनाती में रोड़े अटकाएंगे। यदि फिलीपीन्स के साथ सुरक्षा प्रोजेक्ट करना भारत के लिए जरूरी है तो ताइवान के साथ रिश्तों का दर्जा बढ़ाना भी अत्यंत जरूरी है। ताइपेई के साथ सैन्य और साइबर क्षेत्रों में सघन सहयोग चीन को गंभीर चोट पहुंचाएगा और इस तरह उसे काबू में रहने पर मजबूर करेगा। चीन के साथ ‘जैसे को तैसा’ की नीति अपनानी होगी। वह पाकिस्तान को परमाणु मिसाइलों से लैस करके हमारे लिए चिंता पैदा करता है तो हमें भी चीन के आसपास के देशों को परमाणु मिसाइल से लैस करना चाहिए। सुदूर पूर्व में रिश्तों में वियतनाम, ताइवान, फिलीपीन्स और इंडोनेशिया को अग्रिम पंक्ति में रखना होगा। पूरी तरह फोकस होकर ऐसी दृढ़ भूमिका निभाने पर भारत को ऐसी शक्ति में बदल देगा, जिसे सम्मान न देना अमेरिका व चीन के लिए मुश्किल होगा। एशिया में चीन पर अंकुश लगाने में अग्रणी भूमिका निभाना एक ऐसी बात है जो बिना अपवाद हर एशियाई देश चाहता है। ऐसा करके भारत बेभरोसे के अमेरिका को उतना निर्भर न रहकर अपने हित साध सकेगा।

खबरें और भी हैं...